Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 489
________________ ४७८ सूत्रकृताङ्गसत्र भासी' न पन्छन्नभाषी भवेत्, अविरुद्ध सिद्धान्तार्थं सर्वाऽनुभवसिद्धं प्रच्छन्न भाषणेन-अस्पष्टमाषणेन न गोपयेत् । अथवा प्रच्छन्नं-गुप्तमर्थम् अपक्वबुद्धिम्यो न वदेत् । यतोऽपक्यमतिभ्य स्तादृशसिद्धान्तरहस्योद्घाटनमहिताय भवति । तदुक्तम्-अप्रशान्तमतौ शास्त्र,-सद्भावप्रतिपादनम् । दोषायाऽभिनवोदीर्ण, शमनीयमिवज्वरे ॥१॥ यथा नवीनज्वरवतः शान्त्यर्थमौषधं हानिकारकं भवति तथा अपक्चबु. दिभ्यः शास्त्ररहस्यकथनं हानिकारकमिति भावः । तथा-'ताई' नायी षट्रकायपरिपालकः स्वपररक्षकः, अथवा प्राणिनां संसारसागराद् रक्षणशीलः 'मुत्तमत्थं च' सत्रमर्थ च, सूत्रम् यदि वा तदीयमर्थ स्वमतिकल्पनया विपरीतम् ‘णकरेज्जा' न कुर्यात् स्वमतिविकल्पनातः सूत्रार्थ कथमपि नाऽन्यथा नयेत्-न प्ररू सिद्धान्त के अर्थ को अस्पष्ट भाषण करके गोपन न करे । अथवा जो विषय प्रच्छन्न हो अर्थात् सर्वसाधारण के समक्ष कहने के योग्य न हो, उसे अपरिपक्व बुद्वि वालों से न कहे । क्योंकि ऐसे लोगों के समक्ष उस विषय को प्रकट करना उन्हीं के लिए अहितकर होता है। कहा भी है-अप्रशान्तमतौ शास्त्र' इत्यादि। जैसे नवीन ज्वर वाले की शान्ति के लिए दी गई औषध भी हानिकारक सिद्ध होती है। उसी प्रकार अपरिपक्व बुद्धियों को शास्त्र का रहस्य कहना हानिकारक होता है।' तथा त्रायी अर्थात् षट्काय का परिपालक, स्वपर का रक्षक अथवा प्राणियों का संसारसागर से रक्षण करने वाला साधु सूत्र को, अर्थ को अथवा सूत्र के अर्थको अपनी कल्पना से विपरीत न करे । क्यों રૂદ્ધ અને બધાના અનુભવથી સિદ્ધ સિદ્ધાંતના અર્થને અસ્પષ્ટ ભાષણ કરીને છૂપાવે નહીં. અથવા જે વિષય ગુપ્ત હોય અર્થાત્ સર્વ સાધારણ પ્રત્યે કહેવા ગ્ય ન હોય, તેને અપરિપકવ બુદ્ધિવાળાની આગળ ન કહેવો. કેમકે-એવા લેકની સમક્ષ તે વિષયને પ્રગટ કરે તે તેમને જ માટે महित ४२ ६य छ, यु ५९ छ -'अप्रशान्तसतौ शास्त्र' त्याह જેમ નવા જવર-તાવ વાળાની શાંતિ માટે આપવામાં આવેલ એસડ પણ હાનિકારક સિદ્ધ થાય છે, એ જ પ્રમાણે અપરિપકવ બુદ્ધિવાળાઓને શાસ્ત્રનું રહસ્ય કહેવું તે હાનિકારક હોય છે, તથા ત્રાથી અર્થાત્ ષકાયના પરિપાલક, સ્વ અને પરના રક્ષક અથવા પ્રાણિયોનું સંસાર સાગરથી રક્ષણ કરવાવાળા સાધુ સૂત્રને અર્થને, અથવા સૂત્રના અર્થને પિતાની સવ કલ્પનાથી વિપરીત ન બનાવે. કેમ વિપરીત ન रमाादा श्री सूत्रतांग सूत्र : 3

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