Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १२ समवसरणस्वरूपनिरूपणम् ३०७ जो सासयं जाण असासयं च,
जॉइंच मरणं च जणोववायं ॥२०॥ छाया-आत्मानं यो जानाति यश्च लोकं, गतिं च यो जानात्यनागतिं च यः शाश्वतं जानात्यशाश्वतं च, जातिं च मरणं च जनोपपातम् ॥२०॥
अन्वयार्थः-(जो) यः कश्चित् (अत्ताण) आत्मानम् (जाणइ) जानाति तथा (जो य लोग) यश्च लोकम्-पञ्चास्तिकायात्मकम् च शब्दाद् अलोकम्-अनन्ता
'अत्ताण जो जाणइ जोयलोग' इत्यादि ।
शाब्दार्थ-'जो-यो' जो कोई 'अत्ताण-आस्मानं आत्माको 'जाणइ-जानाति' जानता है तथा 'जो-या-जो कोई 'लोग-लोकम्' पंचास्तिकायात्मक लोक एवं अलोक को जानता है तथा 'जो-य:' जो कोई 'गई-गति' परलोक गननरूप गति को 'च-च' और 'णागई च-अनागर्ति च' अनागतिको 'जाणइ-जानाति' जानता है तथा 'जोय' जो 'सासयं-शाश्वतम्' सर्व वस्तुसमूह को द्रव्यार्थिक नय से नित्य 'च-च' तथा 'असासयं-अशाश्वतम्' पर्यायार्थिक नय से अशाश्वत-अनित्य 'जाण-जानाति' जानते हैं, तथा 'जाई-जाति' जीवों की उत्पत्ति को 'च-च' तथा 'मरणं-मरणम्' जीवों के मरणगति को 'चच' और 'जणोववायं-जनोपपातम्' प्राणियों के अनेक गतियों में जाना जानता है ॥२०॥
अन्वयार्थ-जो पुरुष आत्मा को जानता है, जो लोक को जानता 'अत्ताण जो जाणइ जो य लोग” त्या
शहाथ-'जो-यः' ने छ 'अत्ताण-आत्मानम्' मामाने 'जाणइजानाति' नए छ. तथा जो-यः' ले छ 'लोग-लोकम्' ययास्तिकायामा स तथा भ ने यो छ. तथा 'जो-यः' अ 'गई-गतिम्' परसोई आमान ३५ तिने 'च-च' भने 'णागच-अनागतिच' मनातिन 'जाणाजानाति' त छ तथा 'जो-यः' ने 'सासयं-शाश्वतम्' स परतु सभडन द्रव्याविनयथा नित्य 'च-च' भने, 'असासय-अशाश्वतम' पर्यायायि नयथा HAqत-मनित्य 'जाण-जानाति' नये छे तथा 'जाई-जातिम्' art उत्पत्ति 'च-च' तथा 'मरणं-मरणम्' ७वानी भ२५ तिन 'च-च' भने 'अणोववाय'-जनोपपातम्' प्राणियोनी भने गतियोमा पानुong छ ॥२०॥
श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3