Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्गसूत्रो अन्वयार्थः-(अणुगच्छमाणे) अनुगच्छन् सत्या सत्यामृषेति भाषाद्विकमाश्रित्य उपदेशं कुर्वतो मुनेवचनमनुमरन् कश्चिद् मन्दाधिकारी 'वितहं' वितथं विपरीतमेव अन्यथैव (विजाणे) विजानीयात्, तं सम्पगर्थ मनव गच्छन्तं मन्दाधिकारिणम् 'तहा तहा' तथा तधा-तेन तेन प्रकारेण हेतु दृष्टान्तादिकथनप्रकारेण (साहु) साधुः (अकक्कसेणं) अकर्कशेन कोमलवचनेन उपदिशेत् येन स सम्यग. वगच्छेत् मूखोऽयमितिकृत्वा तं नापमानयेत् (ण कत्थइ भासं) न कत्थयेद् भाषाम् अधिकारीको 'तहा तहा-तथा तथा' उस उस प्रकारसे-हेतुदृष्टात आदि के कथन प्रकार से 'साहु-साधुः साधु 'अकक्कसेणं-अकर्कशेन' कोमल वचन से उपदेशकरे 'ण कत्थर भास-न कत्थयेत् भाषाम्' नेत्र भंग के विकारसे प्रश्न कर्ताके मन में कुछ भी पीडा उत्पन्न न करे तथा 'ण विहिंसइज्जा-न विहिस्यात्' उसका तिरस्कार भी न करे तथा 'निरुद्धगंवावि-निरुद्ध वापि' अल्पार्थ को 'ण दीहइज्जा-नदीघयेदू' दीर्घवाक्यसे कथन न करे ॥२३॥ ___ अन्वयार्थ-सत्या मृषा 'जो सत्य है और झूठ नही है' रूप द्वितीय भाषा व्यवहार द्वारा उपदेश करने वाले मुनि के वचन का अनुसरण करता हुआ जो कोई मन्द अधिकारी पुरुष वितथ याने असत्य को विपरीत ही समझने लगता है । उस सम्यक अर्थ का नहीं जानने वाले मन्दाधिकारी को उस उस तरीका से हेतु दृष्टान्तादि कथन पूर्वक कोमल वचन द्वारा साधु उपदेश करे जिससे वह मन्दाधिकारी उसको सम्यग्रूप से समझ जाय 'यह मूर्ख है' ऐसा समझ कर उसको अपते ते २थी-हेतु टांत विगेरेना ४थन २थी 'साहु-साधुः' साधु 'अक कसेणं-अकर्कशेन' भण क्य था पहेश ४३ ‘ण कत्थइ-भास-न कत्थयेत् મgl” નેત્ર સંકેતના વિકારથી પ્રશ્નકર્તાના મનમાં કંઈ પણ પીડા ઉત્પન્ન न ४२ तथा ‘ण विहिसइज्जा-न विहिस्यात्' तेन। ति२२४।२ ५९॥ न ४२ तथा 'निरुद्धग वावि-निरुद्ध वापि' ३६५ न ‘ण दीहइज्जा-न दीर्घयेत्' मा કથન ન કરે ર૩
मन्वयाथ-सत्याभूषा (मे सत्य छ भने नथी) ३५ मील व्यહાર ભાષા દ્વારા ઉપદેશ કરવાવાળા મુનિને વચનનું અનુસરણ કરતા થકા જે કઈ મંદ અધિકારી પુરૂષ વિતથ અર્થાત અસત્યને વિપરીત જ સમજે છે, એ સમ્યક્ અર્થને ન જાણવાવાળા મંદાધિકારીને એ તરકીબથી હેતુ દૃષ્ટાંત વિગેરે કથન પૂર્વક કેમલ વચન દ્વારા સાધુ ઉપદેશ કરે. જેથી એ મંદાધિકારી તેને સમ્યફ પ્રકારથી સમજી જાય “આ મૂર્ખ છે એવું સમજીને તેને
श्री सूत्रतांग सूत्र : 3