Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृताङ्गसत्र मूलम्-अह तेण मूढेण अमूढगस्स,
कायव्व पूया सविसेसजुत्ता। एओवमं तत्थ उदाहु वीरे,
___ अणुगम्म अत्थं उँवणेइ सम्मं ॥११॥ छाया-अथ तेन मूढेनाऽमूढस्य, कर्तव्या पूजा सविशेषयुक्ता।
एतदुपमा तत्रोदाहृतवान् वीरः अनुगम्यार्थमुपनयति सम्यक् ॥११॥ अन्वयार्थः- (अह) अथ यथा तेन (मूढेण) मूढेन-मार्गभ्रष्टाद् व्याकुलितचित्तेन 'अमूढगस्स' अमूढस्य-तत्सन्मार्गोपदेष्टुः 'सविसेमजुत्ता' सविशेषयुक्ता
'अह तेण मूढेन' इत्यादि ।
शब्दार्थ-'अह-अथ' इसके पश्चात् 'तेण-तेन' उस 'मूढेग-मूढेन' मूर्ख को 'अमूढस्स-अमूढस्य' सन्मार्ग का उपदेश देनेवाले पुरुष की 'सविसेसजुत्ता-सविशेषयुक्ताः' विशेष आदर सन्मानपूर्वक 'पूयापूजा' पूजा 'कायव्वा-कार्या' करनी चाहिए 'एओवम-एतदुपमा यह उपमा 'तत्थ-तत्र' इस विषय में 'वीरे-वीर' तीर्थकर भगवान् महा. वीरने 'उदाहु-उदाहृतवान्' कहा है 'अटुं-अर्थम्' पदार्थ को 'अणुगम्मअनुगम्य' सम्यग रीति से जानकर 'सम्म-सम्यक् सम्यक प्रकार से 'उवणेइ-उपनयति' अपने में स्थिर करते हैं ॥११॥ __अन्वयार्थ-जिस प्रकार वह पूर्वोक्त व्याकुल मूढ पुरुष मार्ग का भूला हुआ अपना सम्मागोपदेशक पुरुष का विशेषादर सन्मान के
'अह तेण मूढेन' त्या
शहा-'अह-अथ' ते ५छ। तेण-तेन' से 'मूढेण मूढेन' भूम ५३षे 'अमूढस्स-अमूढस्य' सन्मानि पहेश मापवावा पु३षनी 'सविसेसजुत्तासविशेषयुक्ताः' विशेष माह२ सन्मान यू 'पूया-पूजा' ५ 'कायव्वा-कार्या' ३२ मे एओवम-एतदुपमा' I S५मा 'तत्थ-तत्र' ते वीषयमा 'वीरे -वीरः' तीथ ४२ मपान महावीर स्वामी से उदाहु-उदाहृतवान्' हे छे. 'अर्ट-अर्थम' पहाय ने 'अणुगम्म-अनुगम्य' सारी रीते याने 'सम्म-सम्यक्' सय ५२थी 'उवणेइ-उपनयति' पातानामा स्थि२ ४३ छ. ॥११॥
અન્વયાર્થ—જે રીતે એ પૂર્વોક્ત માર્ગ ભૂલેલ વ્યાકુળ મૂઠ પુરૂષ પિતાને સન્માર્ગ બતાવનાર પુરૂષનો વિશેષ આદર માન પૂર્વક કેમલ શબ્દાદિ
श्री सूत्रकृतांग सूत्र : 3