Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. श्रु. अ. १४ ग्रन्थस्वरूपानरूपणम् ज्ञायते यथा रज्जुः सर्पभ्रान्त्या, किंशुकनियोऽग्ल्याकारणापीति । न च सर्वज्ञागमस्य क्वचिदपि विसंवादः अन्यथाऽसर्वज्ञत्वापत्तिपसङ्गादिति ॥१३॥ मूलम्-उर्दू अहेयं तिरिय दिसासु,
तसा य जे थावरा जे य पांणा। सया जैए तेसैं परिवैएज्जा,
मणप्पओसं अविकमाणे ॥१४॥ छाया-ऊर्ध्वमस्तिर्यगू दिशासु त्रसाश्च ये स्थावरा ये च माणाः ।
सदा यतस्तेषु परिव्रजेद् मनाक् मद्वेषमविकम्पमानः ॥१४॥ दिखने लगते हैं। किन्तु सर्वज्ञ का आगम कभी ऐसा विसंवादी नहीं होता। अगर वह विसंवादी हो जाय तो सर्वज्ञ प्रणीत ही नहीं हो सकता ॥१३॥ ___ गुरुकुल में वास तथा अभ्यासादि के द्वारा जिन भगवान् के वचन मर्म को जानने वाला शिष्य मूलोत्तर गुणों को अच्छी प्रकार जानता है। उनमें मूलगुण को अधिकृत कर कहते हैं-'उडू" इत्यादि। ___ शब्दार्थ- 'उ-ऊर्ध्वम्' ऊर्ध्व दिशामें, 'अहे-अधः' अधोदिशामें 'तिरियं-तिर्यम्' तिरछि 'दिसासु-दिशासु' दिशाओमें 'जे-ये' जो 'तसा-सा तेज, वायु, आदि द्वीन्द्रिय जीव तथा 'जे-य-ये च' जो 'थावरा-स्थावराः' पृथ्वीकाय, जलकाय और वनस्पति काय सूक्ष्म, बादर 'पाणा-प्राणा:' प्राणी हैं 'तेसु-तेषु' उन एकेन्द्रियादि जीवों में 'सयाરૂપમાં દેખાવા લાગે છે. પરંતુ સર્વજ્ઞના આગમ આવા પ્રકારના વિસંવાદી હતા નથી, જે તે વિસંવાદી થઈ જાય તો સર્વજ્ઞ પ્રણીતજ ન થઈ શકે ૧૩
ગુરૂકુળમાં વાસ તથા અભ્યાસ વિગેરેથી જીન ભગવાનના વચનના મને જાણવાવાળે શિષ્ય મૂલત્તર ગુણાને સારી રીતે જાણે છે, તેમાં મૂળ गुएने अधिकृत परीने ४९ छ – 'उड्ढ" हत्या
शहाथ-'उड्ढे-ऊर्ध्वम्' अहिशामा 'अहे-अधः' अघोहिशामा तिरिय -तिर्यगू' तिरछी 'दिसास-दिशास' हिमां 'जे-ये' ने 'तसा-त्रसाः' तेस, वायु विगेरे मे धन्द्रिय पो तथा 'जे य-ये च' ने 'थावरा-स्थावराः' पृथ्वीय 41य भने वनस्पतिय सूक्ष्म, मा६२ 'पाणा-प्राणाः' प्रालियो छे 'तेसु-तेषु' से मेन्द्रिय विगेरे वामi ‘सया-सदा' सागमा 'जए
श्री सूत्रतासूत्र : 3