Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
View full book text
________________
समयार्थबोधिनी टीका प्र. शु. अ. १४ ग्रन्थस्वरूपनिरूपणम्
४३५
अन्वयार्थः - गुरुकुलवासिशिष्यस्य विनयविधिमाह - (कालेण) कालेनप्रष्टव्यकालं ज्ञात्वा (पयामु) प्रजासु - जीवविषये (समियं ) समितम् सम्यग् ज्ञानयुक्तम् आचार्यम् (पुच्छे ) पृच्छेत् - जीवादिविषयक प्रश्नं कुर्यात्, प्रश्नोत्तरं ददत् खलु गुरुः शुश्रूषायोग्यो भवति अतएवाह - ( दवियस्स) द्रव्यस्य - मोक्षगमन योग्यभव्यस्य वीतरागस्य वा (वित्त) वृत्तम् - संयमानुष्ठानम् आगमं वा (आइक्खमाणी) प्रजासु' जीवों के विषय में 'समियं समितम्' सम्यक ज्ञानवाले आचार्य को 'पुच्छे - पृच्छेत्' जीवादि संबंधी प्रश्न पूछे 'दविघस्स- द्रव्यस्य' मोक्ष गमन के योग्य सर्वज्ञ के 'वित्तं वृत्तम्' संयमानुष्ठानको 'आइक्खमाणे - आचक्षाण:' बताने वाले आचार्य की साधु पूजा करे 'तं- तम्' उस आचार्यके उपदेशको 'सोयकारी - श्रोत्रकारी' आचार्य की आज्ञाका पालन करने वाला शिष्य 'पुढो पृथक्' एकान्त भाव से 'पवेसे- प्रवेशयेत्' अपने अंतःकरण में स्थापित करे 'इमं - इमम्' आगे कहे जाने वाला 'केवलियं - केवलिकम्' केवल ज्ञानसे कहा हुआ 'समाहिं समाधिम्' सम्यक ज्ञानादिको 'संखा - संख्याय' सम्यक प्रकार से जान करके हृदय में धारण करे ॥ १५ ॥
अन्वयार्थ - पूछने का समय जान कर या देखभाल कर शिष्य-प्रजा जीवोंके विषय में सम्यग्ज्ञान युक्त आचार्य को पूछे, याने जीवादि विषय प्रश्न करे, प्रश्नों का उत्तर देने वाले गुरु सेवा करने योग्य होते हैं । इसलिये कहते हैं कि भव्य द्रव्य अर्थात् मोक्ष गमन योग्य अथवा
प्रजासु' वोना समन्धमा 'समियं समितम्' सभ्य ज्ञानवाणा साथार्य ने 'पुच्छे - पृच्छेत्' प्रश्न पूछे. 'दवियरस - द्रव्याय' भोक्ष गभनने योग्य सर्वज्ञना 'वित्त-वृत्तम्' स ंयमानुष्ठानने 'आइक्खमाणे - आचक्षाणः' मताववावाणा भाया. या साधु सत्र २ 'तं तम्' मे आयार्याना पहेशने 'सोयकारी - श्रोत्रकारी' आयार्यानी ग्याज्ञानुं पासून ४२वावाणी शिष्य 'पुढो - पृथम्' मेअन्त लाथी 'पवेसे - प्रवेशयेत्' पोताना अतः शुभां धारण ४रे पाभां भावनारा ‘केत्रलियं - कैवलिकम्' ठेवल ज्ञानथी हि'-समाधिम्' सभ्य ज्ञानाहिने 'संखाय - संख्याय' યમાં ધારણ કરે ॥૧૫॥
'इमं - इमम्' मागण उहेहेवामां आवेल 'समा रीते भगीने हह.
सारी
વિચારીને શિષ્ય
अन्वयार्थ' પ્રશ્ન પૂછવાના સમય જાણીને સમજી પ્રજાના હિત સંબંધી સમ્યક્ જ્ઞાન યુક્ત આચાંને પ્રશ્ન પૂછે છે. અર્થાત્ જીવાદિના સબંધમાં પ્રશ્ન કરે. પ્રશ્નોના ઉત્તર આપવાવાળા ગુરૂ સેવા કરવા
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૩