Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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सूत्रकृतानसूने अन्वयार्थः-यः संसारसागरादतीवोद्विग्नः सन् (बहुं पि) बहु अपि प्रमादतो मार्गात् स्खलितः अनेकशो गुर्वादिभिः (अणुसासिए) अनुशास्यमानः अनुशासितः अनुशिष्टः-शिक्षितः हिच्चा' तथार्चः यथव पूर्व संयमपरिपालने चित्तवृत्तिरासीत् तथैव शिक्षालन्तरमपि चित्तवृत्ति कुर्वाणो मना. गपि चित्ते नान्यथा करोति 'से' सः तथाविध एप पुरुषः 'पेसले' पेशल:विनयादिगुणसम्पन्नो मृदुभाषी भवति तथा-'सुसमे सक्षमः-सूक्ष्मदर्शी घातिकर्मस्वरूपज्ञाता 'पुरिसजाए' पुरुषजात:-पुरुषाधिकारी 'जच्चनिए चे' जात्यन्वितः -मुवंशोद्भावः तथा स पत्र 'सुउज्जुयारे' सुऋज्याचारः-संयममार्ग प्रवर्तकः 'से' भाषी होता है तथा 'सुहगे सक्षमः' वक्ष्मदर्शी एवं 'पुरिसजाएपुरुषजातः' पुरुषार्थ करनेवाला है तथा 'जच्चन्निरचेव-जात्यान्वितश्चैव' वही पुरुष उत्तम जाति वाला तथा 'सु उज्जुपारे-सु ऋज्वाचार: संयममार्ग में प्रवृत्तिकराने वाला है 'से-सः' ऐसा पुरुष ही 'समे-समः' मध्यस्थ होसकता है 'अझंझपत्ते-अझंशां प्राप्तः' क्रोध और माया आदि से रहित होता है ॥७॥ ___ अन्वयार्थ-जो इस संसार रूप सागर से अत्यन्त उद्विग्न है
और प्रमाद वश मोक्ष मार्ग से स्खलित होने से गुरुजनों द्वारा अने. कवार अनुशासित किया गया है और पूर्व की भांति शिक्षाग्रहण करने के बाद भी संयम पालन में रुचि रखता है, ऐसा पुरुष ही विनयादि गुण सम्पन्न होकर मृदुभाषी तथा सूक्ष्मदर्शी घाति कर्म चतुष्टय स्वरूप का ज्ञाता एवं पुरुषार्थी परमकुलीन कहा जाता है। एवं ऐसा ही तथा 'सुहमे - सूक्ष्मः' सूक्ष्भशा सव 'पुरिसजाए-पुरुषजातः' ५३षार्थ ४२१॥ पामा छे. तथा 'जच्चन्निए देव-जात्यान्वितश्चव' ०४ ५३५ उत्तम तपाण तथा 'सुज्ज्जुयारे-सुऋज्ज्वाचारः' सयम भागमा प्रवृत्ति ४२॥११. 'से-सः' मेवा पु३१ ०४ 'समे-समः' मध्य२५ २७ श छे. 'अझझपत्ते-अझझां प्राप्तः' तेव। ५३५ ओ५ मने माया विश्थी २हित डाय छे. ॥७॥
અન્વયાર્થ–જેઓ આ સંસાર રૂપ સાગરથી અત્યંત ઉગવાળા છે, અને પ્રમાદવશ મેક્ષ માર્ગથી ખલિત થવાથી ગુરૂજને દ્વારા અનેકવાર અનુશાસિત કરાયેલ હોય અને શિક્ષા થયા બાદ પણ પહેલાંની માફક સંયમ પાલનમાં રૂચિ રાખતા હોય આવા પુરૂષેજ વિનયાદિ ગુણાવાળા બનીને મૃદુભાષા તથા સૂક્ષમદર્શી ઘાતકર્મ ચતુષ્ટયના સ્વરૂપને જાણવાવાળા તથા પુરૂપાથી અને પરમ કુલીન કહેવાય છે અને એવાજ પુરૂષ સંયમ માર્ગના
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્રઃ ૩