Book Title: Agam 02 Ang 02 Sutrakrutanga Sutra Part 03 Sthanakvasi
Author(s): Ghasilal Maharaj
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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समयार्थबोधिनी टीका प्र. अ. म. १३ याथातथ्य स्वरूपनिरूपणम्
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अन्वयार्थ :- (जे) यः कश्चिदपि (जायए) जात्या (माहणे) ब्राह्मणो भवति (वा) वा - अथरा (खत्तिए) क्षत्रियः - इक्ष्वाकुवंशीयः (तह) तथा ( उग्गपुते) उग्रपुत्रः - उग्रवंशीयः ( तह) तथा (लेच्छई बा) लेच्छको वा भवति (जे) यः ( पचए) मत्रजितः - गृहीतसंयमः (परदत्त भोई) परदत्तभोजी - निरवद्यपिण्डाहारकः संयमानुष्ठानशीलः (जे) यः (गोते ) गोत्रे (माणबद्धे) मानबद्धे - अभिमानस्थानभूते समुत्पन्नः (ण भइ) न स्वभ्नाति - अभिमानं न करोति । जाति कुलमदं यो न करोति स एव सर्वज्ञमार्गानुगामी भवतीति भावः ॥१०॥
क्षत्रिय विशेष है 'जे-य:' जो 'पव्वहए - प्रव्रजितः' संघम को धारण करने के लिये दीक्षित होता है और 'परदन्त भोई - परदत्तभोजी' अन्य के द्वारा प्रदत्त निरवद्य आहारको ग्रहण करता है तथा 'जे-य:' जो पुरुष 'गोते - गोत्रे' वंशका 'माणबद्धे - मानबद्धे' अभिमान् योग्य स्थानमें उत्पन्न होने पर भी 'ण थमइ-न स्तम्नाति' अभिमान नहीं करता है वही सर्वज्ञके मार्ग में प्रवृत्त होता है ॥ १० ॥
अन्वयार्थ - जो कोई भी जाति का ब्राह्मण हो या क्षत्रिय हो या उम्र पुत्र क्षत्रिय जाति विशेष हो या लिछबी जाति का हो वह दीक्षा ग्रहण कर निर्दोष भिक्षा का आहार करनेवाला संयम का अनुष्ठान कर्ता होता है एवं जो उच्च कुल में उत्पन्न होने पर भी जाति कुल का अभिमान या मद नहीं करता है वही सर्वज्ञ पथ का अनुगामी होता है ॥ १०॥
तेभ४ 'लेच्छईवा-लेच्छकोवा' बेच्छ लतीना क्षत्रीय विशेष छे. 'जे - यः' ने 'पब्व इए - प्रव्रजितः' सत्यमने धारणु वा भाटे दीक्षित थाय छे भने 'परद सभोई - परदत्तभोजी' जी द्वारा आपवामां आवेल निरवद्य आहारने अहलु अरे है तथा 'जे-य:' ने पु३ष 'बोते - गोत्रे' व'शथी 'माणबद्धे - मानबद्धे' अलिभान योग्य स्थानमा उत्पन्न थवा छतां पशु 'ण थन्भइ-न स्तनाति' अलिमान કરતા નથી. એજ પુરૂષ સજ્ઞના માગ માં પ્રવૃત્તિ કરવાને ચેગ્ય બને છે. ૧ના અન્વયાય—કાઈ પણ ભલે જાતિથી બ્રાહ્મણુ હાય, ક્ષત્રિય હાય, ઈવા કુવ'શીય હાય અથવા ઉગ્રપુત્ર ક્ષત્રિય જાતિ વિશેષ હોય, અગર લીંછવી જાતિના હાય તે દીક્ષા ધારણ કરીને નિર્દોષ ભિક્ષાના આહાર કરનાર અને સયમનું પાલન કરનાર ડાય અને જો ઉચ્ચકુળમાં ઉત્પન્ન થઈને પશુ જાતિ કુલનુ અભિમાન અથવા મદ કરતા નથી એજ સવજ્ઞ પ્રણીત માર્ગનું અનુસરણ કરવાવાળા કહેવાય છે. ૧૦ના
શ્રી સૂત્ર કૃતાંગ સૂત્ર : ૩
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