Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 6
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
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(१२६०), चिसोहात्ता अभिधानराजेन्द्रः।
विसोहि विसोहइत्ता-विशोध-अव्यका अपनीयेलायें,सूत्र.श्रु०६अदोण्ह वि घडगा समप्पिया, वञ्चद्द गोउलाओ दुद्धं पाणह। विसोहण-विशोधन-न । त्यजने, प्राचा०२ २०१०३
ते कावोडीओ गहाय गाते दुद्धघडए औरऊण कावोडीओ
गहाय पडिनियत्ता। तत्थ दोम्मि पंथा-एगो परिहारेण सोय १०३ उ०। अपगमने, आचा०२ धु० ३ चू० । बहुशः
समो, बितिओ उज्जुएण, सो पुण विसमखाणुकंटगबहुलो। योधने, स्था०५ ठा०२ उ०। व्रतानां पुनर्नवीकरणे, हा०१
तेसि एगो उज्जुएण पट्टिओ, तस्स पक्खलियरस एगो घडो भु०१६ १० । अतिचारकलङ्कस्य शुभभावजलेन शोधने,
भिएणो, तेण पडतेण बिहभो विभिएणो । सो विरिको स्था०८ ठा०३ उ० । निर्मलत्वाधाने, स० १३७ सम० ।
गो माउलगसगासं। बिहओ समेण पंथेण सणियं सणियं (कायस्य विशोधनम् ‘परकिरिया' शब्दे पश्चमभागे ५१५
आगो अक्खुडियाए दुद्धकावोडीए, एयरस तुट्ठो । इयरो पृष्ठे उक्तम् ।)
भणिो -न मए भणिय को चिरेण लहुं वा पहित्ति, मए विसोहणा--विशोधना-स्त्री० । प्रमार्जनायाम् , स्था० ६ ठा० भणियं-दुद्धं पाणेह त्ति, जेण प्राणीयं तस्स दिएणा, इयरो ३ उ०।
धाडियो । एसा दव्यपरिहरणा । भावे विटुंतस्स उवणाविसोहि-विशोधि-स्त्री० । पिण्डचरणादीनां निर्दोषतायाम् ,
कुलपुत्तत्थाणीपहिं तित्थगरोह आणतं, दुद्धत्थाणीयं चा
रित्त, अविराईतेहिं करणगत्थाणीया सिद्धी पावियव त्ति, स्था० ३ ठा०४ उ० । कर्ममलिनस्यात्मनो विशुद्धिहेतुत्वाद
गोउलत्थाणीओ मणुसभवो, तो चरित्तस्स मग्गो उज्जुविशोधिः । विशे। आवश्यके, अनु०। प्रतिक्रमणे, प्रा.
श्रो जिणकप्पियाण । ते भगवंतो संघयणधिइसंपराणा, दव्वचू०४०। पडिक्कमणं ति वा १, पडियरण ति वा २,
खित्तकालभावावइविसमं पि उस्सग्गेणं यश्चंति, वंको थेरपडिहरणं ति वा ३, वारणं ति वा ४, णियत्ती ति वा ५,
कप्पियाण, स उस्सग्गावयायोऽसमो मग्गो, जो अजोग्गो निंदति वा ६, गरिहंति वा ७, विसोहि ति वा ८ । एतेसिं
जिणकप्पस्स तं मग्गं पडिवजह सो दुघडट्ठाणीयं चारिएगट्ठियाणं इमाणि अट्ठ उदाहरणाणि-(श्रा० चू०४ १०)
तं विराहिऊण करणगत्थाणीयाए सिद्धीए अणाभागी भवा, विशोधिपर्यायोदाहरणानि-तत्थ पडिक्कमणे श्रद्धाण-| जो पुण गीयत्थो दव्वखित्तकालभावावईसु जयणाए जयदिटुंतो-जहा एगोराया गयरबाहिं पासायं काउकामो सो. सो संजम अविराधित्ता अचिरेण सिद्धि पायेइ ३ । (श्रा. भणे दिणे सुत्ताणि पाडियाणि, रक्खगा णिउत्सा, भणिया ५०) (वारणाया दृष्टान्तः 'चारणा' शब्देऽस्मिन्नेव भागे १०६६ य-जइ कोर इत्थ पविसिज सो मारेयम्वो, जर पुण ताणि पृष्ठे गतः।) इयाणि णियत्तीए दोरहं करणयाणं, पढमाए चेव पयाणि अक्कमंतो पडिभोसरर सो मोयम्बो । ती ते. कोलियकरणाए दिटुंतो कीरा-एगम्मि गयरे कोलिओ, सिं रक्खगाण बक्खित्तचित्ताणं कालहया दो गामिलया तस्स सालाए धुत्ता वसति । तत्थेगो धुत्तो महुरेण सपुरिसा पविट्ठा, ते णाइदूर गया रक्खगेहि दिट्ठा, उपरिसि- रेण गायइ, तस्स कोलियस्स धूया तेण सम संपलग्गा । यसग्गेहि य संलत्ता-हा दासा! कहिं पत्थ पविट्ठा , तत्थे- तेण भरणइ-नस्सामो जाव ण णज्जामु त्ति । सा भणइगो काकधट्ठो भणइ-को पत्थ दोसो सिइओ तो पहा- मम वयंसिया रायकरणगा, तीए समं संगारो जहा दोहि विप्रो, सो तेहिं तत्थेव मारिओ। बितिभो भीमो तेसु चेव वि एकभज्जाहि होयब्वं ति । तोऽहं तीए विणा ण वच्चापएसु वेव ठिो भणइ-सामि! अयाणतो अहं पविट्ठो, मा मि । सो भण-सा वि प्राणज्जउ । तीए कहियं, पडिम मारह, जं भणह तं करेमि त्ति । तेहिं भरणह-जह अण्ण- स्सुयं च कमाए, पहाविया महल्लए पच्चूसे । तस्थ केण वि प्रोमणकमंतो तेहि चेव परहिं परिमोसरसि तो मुश- उम्गीय-("जइ फुल्ला कणियारया चूयय !." इत्यादिगाथा सि । सो भीनो परेण जत्तेण तेहिं चेष पपहिं पडिनियत्ती,सो 'चूय' शब्दे तृतीयभागे १२०४ पृष्ठे सव्याख्या गता।) एवं मको । इहलो भोगाणं आभागी जामो, इयरो चुक्को। च सोउं रायकराणा चिंतेह-एस चूओ वसंतेण उवालद्धो एतं दस्वपंडिकमणं । भावे दिटुंतस्स उवणी-रायत्थाणी- जइ करिणयारो रुक्खाण अंतिमो पुष्फिो ततो तव किं एहि तित्वयरेहिं पासायत्थाणीओ संजमो रक्खियम्वोत्ति पुष्फिएण उत्तिमस्स ?, ण तुमे अहियमासघोसणा सुया?, श्रावस, सोय गामिगत्थाणीपण एगेण साहुणा अइक- अहो ! सुट्टु भणिय-जह कोलिगिणी एवं करेइ तो किं मिश्रो, सो रागहोसरक्खगऽभाहनो सुचिरं कालं संसारे मए वि कायव्वं ? , रयणकरंडो वीसरिउ ति एएण जायम्वमरियव्याणि पाविहिति । जो पुण किह विपमाएण छलेण पडिनियत्ता । तदिवसं च सामंतरायपुत्तो दाइयविअसंजमं गो तो पडिनियत्तो अपुणकरणाए पडिकमए प्पग्दो तं रायाणं सरणमुवगो । रगणा य से सा दिराणा सो णिव्याणभागी भवह। परिकमणे अशाणदिटुंतो गतो । इटा जाया । तेण ससुरसमग्गेण दाइए णिज्जिऊण रजं (श्राव०) (प्रतिचरणाया उदाहरणम् ' परियरणा ' शम्दे लद्धं । सा से महादेवी जाया । एसा दव्बणियत्ती। भावणि. पञ्चमभागे ३३६ पृष्ठे गतम्)दयाणि परिहरणाए दुखकारण यत्तीए दिटुंतस्स उवणभो-करणगत्थाणीया साह.धुत्तत्थादिटुंतो भएणइ दुखकाओ नाम बुद्धघडगस्स काबोडी । एगो णीपसु विसएसु श्रासजमाणा गीतत्थाणीपण आयरिएण कुलपुत्तो, तस्स दुवे भगिणीश्रो अरणगामेसु वसंति । तस्स जे समणुसिट्ठा णियत्ता ते सुगई गया, इयरे दुग्गई गया। धूया जाया, भगिणीण पुत्ता तेसु वयपत्तेसु ताो दो वि | वितियं उदाहरणं दव्यभावणियत्तणे-एगम्मि गच्छे एगो भगिणीश्रो तस्स समग चेव बरियारो आगयाश्रो। सो तरुणो गहणधारणासमत्थो त्ति काउं तं पायरिया वट्टार्विभणड्-दुरहं प्रत्थीणं कयरं पियं करेमि?, वह पुत्ते पेसह, | ति अण्णया सो असुहकम्मोदएण पडिगच्छामि त्ति पहाजो खेयरणो तस्स दाहामि लि,गामाओ, पेसिया। तेण तेसिं विप्रो, णिग्गच्छतो य गीतं मुह । तेण मंगलनिमित्तं उद
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