Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 6
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha

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Page 1395
________________ वीर कादवसेयः, तथेदम-ततो चरिमं दो मासियपारण्य बाद्विपारेला कालाय नाम सबिस गयो गोसालेय समं तत्थ भगवं सुरणघरे पडिमं ठिनो, गोसालोऽवि तस्स दारपहे ठिश्रो । तत्थ सीहो नाम गामउ (कु) ङपुतो विज्जुमईए गोट्टीदासीए समं तं चैव सुरणधरं पविट्ठो, तत्थ तेरा भ 9 - समयो या माहो वा पडिको या कोई ठि सो साइड जा रथ पचामो, सामी तुरिदको अर गोसालोऽवि तुरिहक्कओ, ताणि श्रच्छित्ता णिग्गयाणि । गोसालण सा महिला छिल्का सा भणति - एस पत्थ कोइ, ते अभिगतूण पिट्टिश्रो, एस धुत्तो श्रणायारं करेताणि देतो ताहे सामि भग-अलोपहिज्जामि, तुम्भे वारेह सिद्धत्यो भगा कीस सीले न खसि किं अम्देऽपि आण्णामो ?, कीस या तो न अच्छसि ता दारे ठि । ततो निम्गंतूय सामी पत्तकाल - यं गो, तर वि तदेव सुधरे ठियो गोसालो ते भ एवं अंतोडियो, तत्थ संदलो नाम गामउदोप्पिणिच्चियादा सीए दत्तिलियाए समं महिलाए लज्जतो तमेव सुरण घरं गओ, तेऽवि तद्देव पुच्छति, तद्देव तुरिहक्का अच्छंति, जाहे ताणि निग्गच्छति ताहे गोसाले हसियं । ताहे पुणोऽवि पिडिओ, ताहे सामि विसर - श्रम्हे हम्माम तुम्भेन वारे किं अम्हे तुम्हे लामो १, " , ताहे सिद्धत्थो भणति - तुमं अप्पदोसेण इम्मसि, कीसतुंडं न रक्खेसि ? - (१२७६) अभिधान राजेन्द्रः । " Jain Education International , " - मुणिचंद कुमाराए, कॅवणय चंपरमणिञ्जउजाये । चोराऍ चारि अगडे, सोम जयंती उवसमेइ ||४७७॥ पदानि - मुनिचन्द्रः कुमायां कूपनयः चम्परमणीयोद्याने चौरायां चारिको ऽगडे सोमा जयन्ती उपशामयतः । पदार्थः कथानकावसेयः तच्चेदम्-" ततो भगवं कुमाराय नाम सरिसं गयो तत्थ पंपरमणि उज्जाणे भगवं पडिमं ठिओ। इस य पासायचो मुखिचंदो पासावच्चिज्जो नाम थेरो बहुस्सुनो बहुसीसपरिवारो तम्मि सन्निवेसे कूवणयस्स कुंभगारस्स सालाए ठिचो सो य जिनकप्पपडिमं करेइ सीसं गच्छे ठवेत्ता, सो य सत्तभावणार प्यां भावेति- "तवेण सत्तेण सुतेरा, एगतेण बलेण य । तुला पंचहा बुत्ता, जिराकप्पं पडिवज्जओ ॥ १ ॥ " एआ श्री भावनाओं, ते पुरा खत भावसार भावेति सा पुरा " पडमा उबस्सयस्मि वितिया, बादि ततिय चउकम्मि । सुरण घरम्मि चउत्थी, तह पंचमिश्रा मसाणम्मि ॥ १ ॥ " सो बितियाए भावेइ । गोसालो सामिं भण्इ एस देसकालो हिँडामो। सिद्धत्थो भएह-अज्ज अम्ह अन्तरं पच्छा सो हिंडतो ते पासा चिज्जे पासति, भणति य- के तुम्भे ?, ते भांति अम्बे समया निम्गंधा, सो भएति हो निगंथा, इमो मे एत्तिश्रो गंथो, कहिं तुष्भे निग्गंथा ?, अप्पयो परियं वर-परिसो महप्पा के ता तेहिं भएह-जारिसो तुमं तारिसो धम्मायरिनोऽवि ते सर्व महीयलिंगो, ताहे सो रुट्टो अन् धम्मापरियं सबइति जह मम धम्मायरियस्स प्रत्थि तवो सादे तुम्भं प डिस्सओ डज्झ । ते भांति - तुम्हाणं भसिएण श्रम्हे न , . बीर कामो ताहे सो मतो साइर सामिस्स - मर सारंभा सपरिग्गद्दा समया विट्ठा, तं सम्यं सादा साहे सिद्धत्येण भणि ते पासायचा साइयो, न ते द ति । ताहे रती जाया, ते मुणिचंदा श्रायरिया बाहि उवस्वगस्स पडिमडिया, सो कृष्णयो तदिवस खेलीएमसे पाऊण विद्याले पर मरोझो जाप पास से मुखिचंदे आयरिए, सो चिंते-एस बोरो सि, तेरा से गए य हिया, ते निस्सासा कया, न भाषाओ पिया, ओहि णा उप्पर्क आउंच विधिं देवलोचं गया। तत्थ महासचिहिप वाणमंत देवेहि महिमा कया, ताहे गोसालो बा हिडिओदेते निव्वयं सो जायर-एस डज्म सो तेखि उपस्सगो, साहेइ सामिस्व, एस तेसि पडिशीया उवस्वचो दरका सिद्धस्वोभान सि उवस्सनो डस्झर, तेर्सि आयरियाणं श्रहिणां उप्परणं आउयं च शिद्रियं देवसोगं गया, तस्थ अदासनिहिपहि वाणमंतरेद्दि देवेहिं महिमा कया, ताहे गोसालो बाहिठि - श्रो पिच्छर, ताहे गश्रो त पदेसं, जाव देवा महिमं काऊ पडिगया ताहे तरस त गंधोद्गवास पुण्फवासं च द ट्टण अम्मदियं दरिसो जाओ । ते साडुणो उब- अरे तुम्मे न वाराह परिसगा बेव बोडिया हिंदह, उडेब, आयरियं कालगयं पि न याग्रह ?, सुबह रतिं सव्वं ताहे ते जाति-सचिल्लो पिसानो, रतिं पि हिंडद ताहे तेऽचि तस्स सदेव उद्विमा, गया आयरियस्स समासं जाय पेंति-कालमयं । तादे से अधिर्ति करे अन्देहिं ण णाया आयरिया कालं करेंता, सोऽवि चमदेता गो । ततो भगवं चोरागं सन्निवेसं गयो, तत्थ चारियत्ति काऊ उहुंचालगा अमडे पक्तिविति, पुणे व उत्तारि ति, तत्थ पढमं गोसालो सामी न, ताव तत्थ सोमा-जयन्तीश्रो नाम दुवे उप्पलस्स भगिणीयो पासावच्चिचाओ जाहे न तरति जमेकार्ड ता परिवाइयचं करेति, ताहि सुर्य-परिसा के वि दो जणा उबाल पतिविजयंति ताओ पुण जायंति--जदा परिमतित्थगरो पव्वाओ, ताई गयाओ, जाय पेच्छति, ताहि मोश्रो, ते उज्भंसिया अहो विणस्सिडकामेति, तेहिं भपण बमाविया महिया य । पिट्टी चंपा वासं, तत्थ चठम्मासिएय खमखेणं । कयंगल देउल रिसे, दरिदथेरा य गोसालो || ४७८ ॥ ततो भगवं पिट्टीचं गनो, तत्थ वउत्थं वासारसं करेड, तत्थ सो चउम्मासियं खवणं करेंतो विचितं पडिमादीहिं करे, ततो वाहि पारिता कयंगलं गो, तत्थ दरिद्दधेरा नाम पासंडत्था समहिला सारंभा सपरिग्गहा, ताण वाडगस्स मज्झे देवलं, तत्थ सामी पडिमं ठियो दिवस व फुसि सीयं पद्धति ता - से जागरखो, ते समहिला गायति, तत्थ गोसालो भएति-परिसोऽपि नाम पाटो भगणा सारंभो समहिलोय । सव्वाणि य एगट्ठाणि गायंति, वायंति य । ताहे सो तेहि शिष्टो सो तर्हि माइमासे तेल सीपण सतुसारेण अच्छा संकुरो भिदि पुणे वि For Private & Personal Use Only , www.jainelibrary.org

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