Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 6
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha

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Page 1403
________________ (१३०४) अभिधानराजेन्द्रः । वीर तेरा धूय ति गहिया एवं सारदाविया, मूला वि तेरा भ शिया - एस तुज्झ धूया, एवं सा तत्थ जहा नियघरं तहा सुदं सुछति, ताप वि सो सदा सपरियो लोगो सीले विणण व सन्चो अप्पणियो कओ, ताहे वाणि सम्पाणि भांति अहो इमा सीलबंद सिः ताहे से बिति यं नाम जायं चंदण प्ति, एवं वच्यति कालो, ताए य धरणी श्रवमाणो जायति मच्छरिज्जइ य, को जाणाति ? कयाति एस एवं पडियज्जेजा, ताहे अहं घरस्स अस्सामिणी भ विस्वामि, तीखे य वाला अतीच दीहा रमणिज्जा किएहाय, सो सेट्ठी मरभरहे जराविरहिए आगयो, जाय गरिय कोड जो पांदे सो सिता सा पाणियं गद्दाय निम्गया, तेरा बारिया, सा महोए पधाविया, ताहे धोती वा ला बज्रेल्लया छुट्टा, मा चिक्खिल्ले पडिहिति ति तस्स हत्थे लीलाकट्ठयं, तेण धरिया बद्धा य । मूला य श्रोलोयjवरगया पेच्छर, तीए णायं विणसियं कज्जं जइ एयं हि वि परिणे तो ममं एस नत्थि जाव तरुणश्रो याही ताव तिमिच्छामि नि सिट्टिम्मि निम्गए ताप तहाचियं सदावेत्ता बोडोविया नियलेहि बच्चा, पिट्टिया व वारियो साए परिजो-जो साहर बारियगस्स सो मम नरिथ, ताहे सो पिलिओ सा घरे हो बाहिरि कुडिया, सो कमेण गोपुर - कहिं चंदणा ?, न कोइ वि साहइ भयेण, सो जाणाति-नूरमति उवरिं वा । एवं रातिं पि पुच्छि - या जाणाति सा सुत्ता नृणं, बितियदिवसेऽवि सा न दिट्ठा, ततियदियसे धणं पुच्छर साइड मा मे मारेह, ताहे घेरदासी एक्का; सा चिंतेइ किं मे जीविएण ? । सा जीव व राई; ताए कहिये - श्रमुयघरे; तेण उग्घाडिया, छुहाहयं पिच्छित्ता कूरं पमग्गितो, जाव समावतीए नत्थि ताहे कुम्मासा दिट्ठा, तीसे ते: सुप्पको दाऊण लोहारघरं गो, जानियागामि, ताहे सा इत्थिी जहा कुलं संभरिउमारा पलुगं विषमत्ता तेहिं पुरो का हिययम्मंतर रोवति, सामी य प्रतियची, तार चितियं सामिस्स देमि मम एवं अहम्मफलं भवति भगवं ! कप्पर ? सामिण पाणी पसारिश्रो, चउब्विहोऽवि पुराणो अभिग्गहो, पंच दिव्वाणि ते, बाला तयवत्था चैव जाया, ताणिऽवि से निलागि फुट्टासिसोदिया उराणि जायाणि दे बेडियसका कया, सक्को देवरायागो, सुहारा अतेरस हिराकोडिओ पाडिया, कोसंबी य सम्यधो उकेरा पुरा पुराणमंते अन सामी पडिला मिश्रो ?, ताहे राया संतेउर परियो आगो, ता तथ संपुला नाम दहिवाहणस्स कंचुइजो सो बंधिन्ता श्राणियओ तेरा साया, ततो खो पादे पडिपो, राया पुच्छर का एसा ! तेरा से कहियं-जहेसा दहिवाहणरराणो दुहिया, मियावती भगह - मम भगिणीधूयति, श्रमयोऽपि सपलीओ आगओ, सामि मंद, सामी विनिम श्रो, ताहे राया तं वसुहार पहिओ, सबके वारिओ, ज स्पेसा देव तस्याऽऽभव सा पुच्या भग-मम पिउ 'ताहे सेट्ठिा गहियं । ताहे सक्केण सयाणीश्रो भणिश्रो-एसा चरितसरीरा एवं सगोपादि०जाव सामिस्स नाग १- बलात् । २- मुडिता । Jain Education International वीर उप्पर, एसा पदमसिलिगा, ताहे कांतेरेछूढा संघति । छम्मासा तया पंचहि दिवसेहिं ऊणा जद्दिवसं सामिया भिक्खा लया । सा मूला लोगेणं संपाडिया ही लिया य । तत्तो सुमंगलाए, सगँकुमार सुवित्त एइ माहिंदो । पालगवाइलवखिए, अमंगलं अप्पणो असिया।। ५२२ ।। सामी ततो निम्गंत सुमंगलं नाम गामो तहिं गनो, तत्थ सणकुमारो पर बंदति पुच्छति य । ततो भगवं सुच्छिलं गयो, तरथ माहिंदो पि पुच्छी पह। ततो सामी पाल नाम गामं गश्रो, तत्थ वाइलो नाम वाणियओ जताए पहाबियो अमंगलं ति काऊण असिं गद्दाय पहाविश्रो एयरस फलउ ति तत्थ सिद्धत्थे सहत्थेण सीसं छिरणं । चंपा वासावासं, जक्खिदे साइदत्तपुच्छा य । वागरखदुहपएसल, पञ्चक्खाणे यदुविहे उ ।। ५२३ ॥ ततो सामी बर्ष नगरि यो तत्थ सातिदत्तमाहसस्स श्रग्गिोत्सवाला वसई उदगयो, साथ चाउमा लमति तस्य पुराण- माणिभदा दुवे असा पिज्जुवासं ति, बसारि विमासे पूर्व करेति रनि निता सोि तेइकं जाति स तो देवा महंति ताहे विश्वासणानि मित्तं पुच्छर - को ह्यात्मा ?, भगवानाह - योऽहमित्यभिमन्यते । स की है, सूक्ष्मोऽसी । किं तत् सूक्ष्मम् पन्न गृह्णीमः । ननु शब्दगन्धानिलाः, नैते इन्द्रियग्राह्यास्ते न ग्रहणमात्मनः ननु प्रापिता खः किं भंते! पाय किं पच्चक्खाणं ?, भगवानाह सादिदत्त ! दुविहं पदेसणगं-धम्मियं, अधम्मियं च । पदेसणं नाम उवएसो । पश्चक्खाणेऽवि दुविहे मूलगुणपश्चक्खाणे, उत्तरगुणपच्चक्खाणे य । एएहिं पहिं तस्स उवगतं । भगवं ततो निग्गश्रो । , " , जंभियगामे नाण - स्स उप्पया वागरेइ देविंदो । मिंढियगामे चमरो, बंद पियपुच्छणं कुणइ || ५२४॥ जंभियगामं गो, तत्थ सक्को श्रागश्रो, वंदित्ता नट्टविहिं उबइंसिना बागरे- जहा पनि दिवसेदिकेचलनास उप्पजि दिति । ततो सामी मिडियमा गयो तत्थ चमर पिपुच्छ व पति वंदिता पुन्ना य परिगतो। छम्माणि गोव फडसल-पवेस मज्झिमाऍ पावाए। खरओ पिओ सिद्धत्थ, वाणियओ नीहरावे ।। ५२५ ।। ततो भगवं मणि नाम मा गयो, तर बाहि पदिमं ठिश्रो, तत्थ सामिसमीवे गोवो गोरो छड्डेऊण गामे पविडो दोहणासि काऊ नि ते य गोगा अडवि पविट्ठा चरियव्वगस्स कज्जे, ताहे सो श्रागतो पुच्छति - देवजग ! कहिं ते वदल्ला ?, भयवं मोरोण अच्छर, ताहे सो परिकुविश्रो भगवतो करणे कसलगाओ हुइति एा इमे कराएगा इमे जाय दोषि वि मिलियाओ, ताहे मुले भ गाओ मा को उपसमिति नि के भांति का जाव इयरेण करणेण निग्गता ताहे भग्गा, ' करणेसु तरं तत्तं, गोवस्स कयं तिविट्टुखा रण्णा । करणेसु वज्रमाण-स्स [ते] टूटा डसलाया | १॥ भगवतो तहारवेषणीयं कम्मं उदिएं । ततो सामी ममं गतो तत्थ सिद्धस्था 2 1 , For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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