Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 6
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha

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Page 1401
________________ वीर ताहे इमो श्रवरेता विडरूवं विउव्वर, तत्थ इसइ य गाय य अट्टट्टहासे य मुंचति, काराच्छियाओ य जहा विडो तहा करे, असिद्धाय व भगर, तत्थ वि हम्मर, ताहे तो चि पीति । ( १३८२) अभिधानराजेन्द्रः । मलए पिसायरूवं, सिवरूवं हत्थिसीसए चैव । ओहसणं पडिमाए, मसाथ सको जवणपुच्छा ॥ १०८ ॥ ततो मलयं गतो गामं, तत्थ पिसायक विन्दति उम्म तयं भगवती कर्व करे, तस्थ अविरयाओ भवता - राद्दर, तत्थ बेडकारकयारेहि भरिर लेड्डु (हु) भरिज्जर एहि च हम्मद्द, ताणि य विहावे ततो ताणि छोडिया पडियाणि नाति, ताकहिते हम्मति, ततो सामी निम्तो इरियसीसं गामं गतो, तत्थ भिक्खाए अविगयस्स भगवओ सिवरुवं विउब्वर सागारियं च से कसाइययं करेइ, जाहे पेच्छा, अविरइयं ताहे उट्ठवेद, पच्छा हम्मति, भयवं चिंतेति - एस अतीव गाढं उड्डाहं करेइ असणं च तमदा गामं चैव न पविसामि यादि अच्छामि, धरणे भरांतिपंचालदेवरूपं जदा तदा विजयति तदा फिर उप्पो पंचालो, ततो वाहि निग्गश्रो गामस्स, जो महिलाजूनं तत्र कसाइततेण ऋच्छति, ताहे किर ढोढसिवा पवत्ता, जम्हा सकेण श्रोताहे ठिया, ताहे सामी एगंतं श्रच्छति, ताहे संगमय उसेइ न सका तुम ठायाओ चालेड ?, पेच्छामि ता गामं श्रतीहि ताहे सको आगतो पुच्छह-भगवं ! जत्ता मे जब अयाबाई फासूपविहारं १, वंदिता ग , तोसलिकुसीसरूवं, संधिच्छेयो इमो ति वज्झो य । मोह इंदालिङ, तत्थ महाभूइलो नामं ॥ ५०६ ॥ ताहे सामी तोसलिं गतो, बाहि पडिमं ठिश्रो, ताहे सो देवो चिंतेइ एस न पविसह एत्ताहे एत्थ वि से ठियस्स करेमि उवसग्गं, ततो खुड्डुगरूवं विउग्वित्ता संधि छिंदर उवकरणेहिं गहिएहिं धाडीप तो सो गहितो भणति - मा अहं कि जाग्राम आयरिए अहं पेसियो कहिं सो ?, एस बाहिं अमुए उज्जाणै, तत्थ इम्मति, बज्भतिथ मारे वो सीओ तत्थ भूलो नाम इंदजालियो, ते सामी कुंग्गामेदिओ ताहे सो मोर, साहइ य-जहा एस सिद्धत्थरायपुत्तो, मुको स्वामिश्रो खुट्टओ मग्गिय न विट्टो, नायं जहा से देवो उस करे। Jain Education International मोलि संधि सुभागह, मोएइ रडिओ पिउवयंसो । , तोसलि व सतरज्जू बावची तोसलीमोक्खो ॥११०॥ ततो भग मोलि गयो, तर विवाह पडिमं डियो, तत् चिसो देवो खुरु चियिता संधिमग सोहेर पडिलेहेर व सामिस्स पासे सय्याणि उपगराणि चित्रव्यइ, ताहे सो खुड्डश्रो गहिश्रो, तुम कीस एत्थ सोहेसि ?, साहइ - मम धम्मायरियो रति मा कंटए भंजिहिति सो सुरचितं गिहिनि सो कहिँ ?, कहिले गया, दिट्टो सामी, ताण व परिपेरन्ते पार्थति, गहितो त स्थ सुमागहो नाम रट्ठश्रो पियमित्तो भगवओो सो मोह, तनो सामी तोसलि गयो, तत्थ वि तद्देव गहिश्रो, नवरं-उक्कलं विजिउमादत्तो तत्थ से रज्जू छिरणो, एवं सत्त वारा बीर छिौ, ताहे सिद्धं तोसलियस्स खत्तियस्स, सो भणति - मुग्रह एस श्रचोरो निहोसो, तं खुइयं मग्गद्द, मग्गिज्जतो न दीसह, नायं जहा देवो ति । १. सिद्धत्यपुरे तेथे ति कोसिओ आसवाणिओ मोक्खो । वयगामर्हिडऽसण, बिइयदिणे बेइ उवसन्तो ।। ५११ ।। ततो सामी सिधपुरं गतो, तस्य पितेा तहा क जहा तेणो ति गहिश्रो, तत्थ कोसिश्रो नाम अस्सवालियो, ते कुंडपुरे सामी दिल्लओ, तेरा मोयाविशो ततो सामी वामं ति गोडलं गयो - तत्थ य तद्दिवसं छणो, सव्वत्थ परमं उवक्खडियं, चिरं च तस्स देवस्स दिवस सम्म कार्ड सामी चिंतेर गया मासा, सो गतो ति श्रतिगओ जाव असणाओ करेति ततो सामी उवउत्तो पासति, ताहे अद्धहिंडिए नियतो बाहिं पडिमेडियो, सोय सामि हिला प्रभोपति- किंम " " , परिणामो न व सितारे खामी तद्देव सुखपरिणामो ताद आउट्टो, न तीरह खोमेडं, जो इदि मासेदिं न चलियो यस दीणावि काले न सको चालताहे पादे पडिश्रो भणति-सचं जं सबको भणति, सव्वं खामेह-भगवं ! अहं भग्गपतितो तुम्हे सम्मत्तपतिरणा । बच्चह हिंडह न करे-मि किंचि इच्छा न किंचि दत्तव्यो । तत्थेव वच्छवाली, थेरी परमभवसुहारा ।। ५१२ ।। मासे बद्धं, देवो कासी य सो उ उवसग्गं । दय वयग्गामे, बंदिय वीरं पडिनियचो ।। ५१३ ॥ जाह एसा अती न करेमि उपसर्ग, सामी भणति भो संगमय ! नाहं कस्सर वत्तव्यो, इच्छाए अतीमि वा या ताई सामी चितियदिवसे तत्थेय गोडले हिंडतो - " वालचेरी दोसीस पायसेस पडिलाभिओ ततो पंच दिव्यासि पाउम्भूपाणि एगे भांति जदा तदिवस भीरं न यं ततो वितियदिवसे ऊहारेऊण उपसडिये ते पडिलाभिश्रो इम्रो य सोहम्मे कप्पे सम्ये देवा दि इसे उपग्गमणा अच्छति, संगम य सोहम्मे गो तत्यसको तं ददरा परंमुडो ठिथो, भवर-देवे भी! सुयह एस दुरप्पा, ए एएण अम्ह वि चित्तावरक्खा कया असिया देवा जतिक प्रसारोन एए 3 अम्ह कज्जं, असंभासो निव्विसश्रो य कीरउ । देवो चु(ठि) महिडिओ, वरमंदरचूलियाइसिहरम्मि | परिवारिउ सुरबहुर्हि, आउम्मि य सागरे सेसे || ५ १४ ।। ताहे निच्छुढो सह देवीहिं मंदरचूलियाए जाणपण विमा गम्म डियो, सेसा देवा देश वारिता, तस्स सागरोषमदिती सेसा । श्रालभियं हरि विज्जू, जिणस्स भत्तीऍ वंदओ ए इ । भगवं पिपुच्छा जिय, उवसम्मति चेदमवसे ॥५१५।। हरिसह सेयवियाए, सावन्थी खदपडिमसक्को य । यरिउं पडिमाए, लोगो आउट्टियो वंदे ॥ ५१६ ।। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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