Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 6
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
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विज्ञातत्य उपलो अडिगामा सो पुष्यमेव अतितो, सो व ते दिउडियो तिक्खु तो वंदर, पच्छा सो भगइ ए एस बारिओ, एस सिद्धस्थरायपुतो धम्मवरचकपट्टी एस भगये पाणि प से पेच्छड, तत्थ सक्कारिक मुझे ।
( १३७८) अभिधानराजेन्द्रः।
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ततो व पुरिमताले बम्गुर ईसाथ अक्षर पडिमा | मल्लिजिणायणपडिमा उधार बंसि बहुगोट्टी ||४६०॥ ततो सामीपुरमा पत्र तर वग्गुरो नाम सेट्ठी त स्स भद्दा भारिश्रा, वंझा अवियोउरी जाणुकोप्परमाया, बइणि देवस्स उवादिगोणि काउं परिसंता । श्रण्णया सगमुद्दे उना उज्जेलियाए गया, तन्ध पासंति देव उलं सडियपडियं तत्थ सिमिलो पडिमा तं गर्मसंति, जइ श्रम्ह दारश्रां दारिश्रा वा जायति तो एवं चेव देउलं करेस्सामो, एय भन्तादि य होहामो, एवं नर्मसत्ता गयाणि । तत्थ श्रासन्निहिश्राप वाणमंतरीप देवयाए पाविरं कथं धाय गम्भो जं बेच आओ तं देवउलंकामारखाणि प्रतीय तिस पूर्ण करैति पचतिय अनियंति एवं सो सायनो जाओ। इम्रो व सामी बिहर माणो सगड़मुहस्स उज्जाणस्स नगरस्स य अंतरा पडिमं डिम्रो परो य हाम्रो उलपडसादयो सपरिजो म इया ही विविकुसुमहत्योतं आयो जाइ ईसा व देविंद पुण्यागो सामि वंदिता पज्वासति पम्पुरं च वीतीवंत पासह भगति य-भोवगुरा ! तुमं पचतित्थगरस्य महिम न करे तो प डिमं जासि, एस महावीरो वद्धमान तो आगओ मिष्ठार्ड कार्ड सामेति मदिमं च करे। ततो सामी उसका बच्चा, पत्ता वधूवरं स पर ताण पुरा दोरि षिविरुवा इंतिखमाणित सालो भणति अहो हमो सुसंजोगो- “ ततिल्लो विहिराया जातिदूरे व जो जहिं वसर । जे जस्स छोइ सरिसं, तं तस्स विजयं देव ॥ १ ॥ " जाहे न ठाह ताहे तेहिं पिट्टिश्रो, पिट्टित्ता बंसीकुडंगे छूढो, तत्थ पडिओ प्रत्ताणश्रो ओ अच्छा, यार सामि, ताई जित्यो भणति सर्पकयं ते, ताहे सामी अदूरे, गंतुं पडिच्छर, पच्छा ते भराति- नूणं पस पयस्स देवज्जगस्स पीढियावाहगो वा छतधरो या आणि अर्याल, ता मुद्द, ततो मुझे। अछे भांति - पहिपहिं उतारिओ सामिं अच्छतं दद्ल । गोभूमिपलाटे, गोवकोवे व पंसि जिसमे । रायगडूमवासा, वभूमी बहुसम्या ।। ४६१ ॥ ततो सामी गोभूमि वार पत्थंतरा अडवी घणा, सदा गावीओ चरंति तेण गोभूमी, तत्थ गोसालो गोवालए भराइअरे वज्जलाढा ! एस पंथो कहि वचइ ? । वज्जलाढा नाम मेच्छा । ताई ते गोवा भांति कीस अकोससि ?, ताहे सो भणा अपपुत्ता! खरपुत्ता! सद भोसामि, ताई तेि मिलता पट्टा बंधित बंसी छूटो र पुलोमो
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जिसमें ततो रायगडं गया तत् सारचं तत्थ चाउम्मासखवणं विचित्ते अभिग्गद्दे बाहि पा१- प्रसविनी । २-उपयाचितानि ।
बीर
रेसा सरप दितं करेति समतीय, जहा - पगस्स कुबुं - बियरस बहुसाली जाओ, ताहे सो पंधि भणति तुम् भिदेमि मम पर्व सो उवास - खावे, एवं चैव मम वि बहुं कम्मं अच्छा, एतं अच्छारिनिज्जराय ते अणारिसे लाडाव भूमी सुद्धभूमी तत्थ विहरियो, सो अारो दर, जहा बंभचेरेसु, छु छु करेंति आईसु समयं कुकुरा डसंतुति एवमादि, तत्थ नवमो वासारतो कनो, सो य अभडो ग्रासी । वसती वि न लग्भः । तत्थ छुम्मासे अशिवजागरि विहरति । एस नयमो पासारो ।
अनित्रयवासं सिद्ध-त्थपुरं तिलभंत्र पुच्छ निष्फत्ती । उप्पाडेर भणजो, गोसालो वासवदुलाए । ४६२ ॥ ततो निम्नया पढमसरप सिद्धरथपुर गया तो स्थि पुरानो कुम्मगामं संपट्टिश्रा, तत्थंतरा तिलथंबओ, तं दडूगोसालो भण-भगवं! एस तिलत्थं किं निष्फलदिति न वलि १, सामी भणति निष्फखद्वितिय सत तिलपुष्कजीवा उद्दाहनाएगाए लिगलिया बचावादि विततो गोसाले असतेस घोसरिऊण सलेगो उप्पाडि ओ एते पडियो अहासविडियदि य वाणमंतरेद्दि मा भगवं मिच्छायादी भव वासं वासितं असत्था बहुलिया य गावी आ गया, ताए खुरेण निक्लिसो पट्टिश्रो पुप्फा
य पच्चाजाया ।
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मगहा गोवरगामो, गोसंखी वेसियाण पाखामा || कुम्मग्गामायावण, गोसाले गोवण पउट्ठे ॥ ४६३ ॥ ताहे कुम्मगाम संपत्ता, तस्स बाहिं वेसायो बालतवस्सी आयावेति तस्स का उत्पती १ पाए नवरी रायहिस् य अंतरा गोब्बरगामो, तत्थ गोसंखी नाम कुढुंबिश्रो, जो तेसिं अधिपती आभीराणं, तस्स बन्धुमती नाम मज्जा अवियाउरी । इओ य तस्ल अदूरसामंते गामो चोरेहिं हो, तं इंतूण बंदिग्गहं च काऊण पहाविथा। एका चिरपसूया पतिम्मि मारिते चेडेल समं गहिया सा बेडं हाचिया, सो बेडओ तेरा गोसखिया मरुचाएं गए दिट्ठो गद्दियो य, अप्पणियार महिलियाप दिलो. तत्थ पगासियं - जहा मम महिला गूढगभा सी. तत्थ य छगलयं मारेला लोहित्रगंध करेसायानेच दिया सम्यं जं तस्य इतिकलव्यं तं कीरह, सोडाव ताव संवर, सावि से माया पाए वि किपा, पेसिया बेरी गडिया, एस मम धूप ताहे जो ग या उपयातं सिफ्लाविया सा तस्य नाम निम्गया गणिया जाया । सो य गोसंखियस्स पुसो तरुणो जाश्रो, घियसगडे चंपं गओ सवयंसो, सो तत्थ पेच्छ नागरजणं जद्दिच्छित्रं श्रभिरमंतं, तस्स वि इच्छा जाया अहमपि ताव रमामि सो तत्थ गतो बेसावादयं तस्थ सा चैव माया अभिरुयाम देवा दाविि वचइ । तत्थ वश्यंतस्स अंतरा पादो श्रभेज्झेण लिनो, सो न जाणइ केणावि लित्तो । पत्थंतरा तस्स कुलदेवया मा किच्च मायरउ वोहेमि त्ति तत्थ गोट्ठए गावि सबच्चिय
।
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