Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 6
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha

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Page 1371
________________ अभिधानराजेन्द्रः। मिया दिड्डा, प्रत्यलाभो देवाणुप्पिए ! भोगलामो देवा- तुङ जाव-हियया, जावभंजलि का एवं सामि' चि सुप्पिए पुत्तलामो देवाणुप्पिए। सुक्खलामो देवाणुप्पिए! प्राणाए विणएवं वयणं पडिसुशंति परिसुमिता सिदत्व रजलाभो देवाणुप्पिए! एवं खलु तुमे देवाणुप्पिए ! स्स खत्तियस्स अंतिभामोपडिनिक्खमंति,पडिनिक्समिता नवण्हं मासारखं बहुपडिपुन्नाणं अट्ठमाणं राइंदियाणं जेणेव बाहिरिमा उवडाणसाला तेथेव उवागच्छति, उविश्कताखं भम्हं कुलकेउं अहं कुलदीवं कुलपब- वागन्छित्ता खिप्पामेव सविसेसं बाहिरियं उवहाणसावं यं कुलबडिंसयं कुलतिलयं कुलकित्तिकरं कुलवित्तिकरं गंधोदगसित्तं सुइं जाव-सीहासयं रयाविति रयाविचा कुलदिपयरं कुलाऽऽधारं कुलनंदिकरं कुलजमकरं कुलपा- जेणेव सिद्धत्ये खतिए तेशेव उवागच्छति उवागच्छित्ता यवं कुलविवद्धणकरं मुकुमालपाणिपायं महीणपडिपुन्न- करयल जाव मत्थर भंजलिं का सिद्धत्यस्स खतिमपंचिंदियसर्गरं लक्खणवंजणगुणोववेयं माणुम्माणप्पमा- स्स तमाणतिनं पचप्पियंति ॥ ५६ तए णं सिद्धत्थे खगपडिपुन्नमुजायसव्वंगसुंदरंग ससिसोमागारं तं पिय-| त्तिए कलं पाउप्पभाए रयणीए फन्लुप्पलकमलकोमलुदंसणं सुरूवं दारयं पयाहिसि ॥ ५२॥ म्मीलियम्मि महापंडुरे पभाए रसासोगप्पगासकिंसुमसु(११) वीरस्य यौवनावस्था प्रमुहगुंजद्धरागबंधुजीवगपारावयचलणनयणपरहुभसुरतसे विभ यंदारए उम्पुक्कबालभावे विन्नायप्प- लोणजासुमसुमरासिहिंगुलनिभराइरेगरेहंतसरिसे क. रिणयमित्ते जुन्धणमणुपत्ते सूरे वीरे विकते विस्थिमवि- मलायरसंडविवोहए उनिम्मि सूरे सहस्सरस्सिम्मि दिखउलबलवाहणे रजबई राया भविस्सइ ॥५३॥ तं उराला | यरे तेभसा जलंते,तस्स य करपहरापरद्धम्मि अंधयारे वाणं. जाव सुमिणा दिट्ठा, दुचं पि तचं पि अणुवहा॥ | लायवकुंकुमेणं खचिभब्य जीवलोए, सयणिजामो अन्नतए णं सा तिसला खत्तिाणी सिद्धत्थस्स रबो मंतिए दुइ ॥ ६० ॥ प्रभुहिता पायपीटामो पचोरुहइ पच्चोएयमढे सुच्चा निसम्म हडतुडु० जान-छियया करयलप- रुहिता जेणेव अणसाला तेखेव उवागच्छह उवागच्छिरिग्गहि० जाव मत्थए अंजलि कह एवं वयासी-11५४|| त्ता अट्टणसालं अणुपविसइ, अणुपविसित्ता, अणेगवायामएवमेयं सामी,तहमेयं सामी अवितहमेयं सामी,भसंदिद्धमेयं जोगवग्गणवाहुमहणमलजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपासामी, इच्छियमे सामी, पडिच्छियमेनं सामी, इच्छि गसहस्सपागेहिं सुगंधतिनमाइएहिं पाणणिजेहिं दीवणिजेअपडिच्छियमेयं सामी, सच्चे णं एस अढे से जहेयं हिं मयणिजेहिं बिहणिजेहिं दप्पणिजेहिं सबिदियगायपतुन्भे वयह त्ति कडु ते मुमिणे सम्म पडिच्छइ पडिच्छित्ता न्हायणिोहिं भन्भंगिए समाणे तिचम्मंसि निउणेहि सिद्धत्थेणं रमा अन्भणुन्नाया समाणी नाणामणिरयणभ- पडिपुत्रपाणिपायसुकमालकोमलतलेहिं भम्भंगणपरिमद्दत्तिचित्तामो, भद्दासणामो अन्मुडेइ,मभुद्वित्ता अतुरियम णुव्वलणकरणगुणनिम्माएहिं दस्खेहिं पढेहिं कुललेहि चवलमसंभंताए अविलंबिभाए रायहंससरिसीए गईए मेहावीहिं जिभपरिस्समेहि पुरिसेहिं भड्डिसुहाए मैससुहाए जेणेव सए सणिजे, तेणेव उवागच्छद उवागच्छित्ता, तयासुहाग रोमसुहाए चउचिहाए मुहपरिकम्मणाए संवाहएवं वयासी-मा मे एए उत्तमा पहाणा मंगला सुमिणा खाए संवाहिए समाणे भवगयपरिस्समे महणसालामो दिवा अबेहि पावसुमिणेहिं पडिहम्मिस्संति त्ति कह देवय- पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमिना जेणेव मजणघरे तेव गुरुजणसंबद्धाहिं पसत्थाहिं मंगलाहिं धम्मियाहिं कहाहिं उवागच्छद उवागच्छित्ता मजणघरं मणुपविसइ,मणुपविसुमिणजागरियं जागरमागीपडिजागरमाणी विहर।।५६।। सित्ता समसजासाकुलाभिरामे विचित्तमणिरयणकुहिमतले तप यं सिद्धत्थे खत्तिए पच्चूसकालसमयंसि कोडुवित्र- रमणिजे एहाणमंडसि नाणामखिरयणभत्तिचित्तंसि एहापुरिसे सद्दावेद सहावित्ता एवं वयासी-।। ५७ ॥ खि- णपीटंसि सुहनिसने पुप्फोदरहिम,गंधोदएहि भ, उपहोप्पामेव भो देवाणुप्पिा ! अज सविसेसं बाहिरिनं उव-| दएहि अ, मुडोदएहिम, सुहोदएहि यकवाणकरणहाणसालं गंधोदयसित्तं सुइसंमज्जिवलितं सुगंधवरपं- पवरमजणविहीए मजिए तत्थ कोउभसएहिं बहुविहेहि पवन्नपुप्फोवयारकलिमं कालागुरुपवरकुंदुरुक्कतुरुक्कडझं- कल्लाणगपवरमजणाऽवसाणे पम्हलसुकुमालगंधकासाइनवधूवमधमतगंधुदुयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवहिभूमं| लुहिअंगे महयसुमहरषद्सरयणसुसंधुडे-सरससुरभिगोकरेह कारवेह,करिता कारवित्ता सीहासणं रयावह रयावेहि- सीसचंदणाणुलित्तगत्ते सुइमालापनगविलवणे माविता ममेयमाणत्तिमं खिप्पामेव पञ्चप्पिणह ॥५८॥ तए णं ड्रमणिसुवने कप्पियहारद्वहारतिसरयपालंबपलबमाणककोडुवित्रपुरिसा सिद्धस्थे रन्ना एवं खुचा समाया हह- डिसुत्तसुकयसोहं पिरागेविजे अंगुलिअगललियकया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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