Book Title: Abhidhan Rajendra kosha Part 6
Author(s): Rajendrasuri
Publisher: Abhidhan Rajendra Kosh Prakashan Sanstha
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( १३५३) अभिधानराजेन्द्रः ।
वीर
भरणे वरकडगतुडिअर्थभिप्रभु अहिअरूवसस्सिरीए कुंडल जो भाग मउडदत्तसिरए हारुच्छियसुकयरइचबच्छे मुद्दिमापिंगलंगुलीए पाल पलंबमाण सुकयपडउत्तरिजे नाणामणिकणगरयणविमलमहरि अनि उ णोवचित्रमिसिमितिविरइ सुसिलिट्ठविसिठ्ठलट्ठयविद्धवीरवलए किं बहुणा कप्परुक्खए त्रिव अलंकि अविभूसिए नरिंदे, सकोरंट मल्लदा मेणं छतेणं धरिजमाणेणं सेवरचामराहिं उवाणीहिं मंगलजयसद्दकयालोए अगगणनायगदंडनायगराईसर तलवर मावि अकोडुंबिय मंतिगणगदोवारियमच्चचढे पीढमद्दनगरनिगमसिट्ठिसे गावइसत्थवाह संधि - वालसद्धि संपरिवुडे धवल महामेहनिग्गए इन गहगणदिप्पं तरिक्खतारागणारा मज्झे ससि व्व पित्रदंसणे नरवई न रिंदे नरवसहे नरसी अन्महिअरायतेयलच्छीए दिप्पमाणे मज्जणघराओ पडिनिक्खमइ, मञ्जणघर। ओ पडिनिक्खभित्ता जेणेव बाहिरिया उबट्ठाणसाला तेणेव उबागच्छर उवागच्छित्ता सीहासांसि पुरत्थाभिमुद्दे निसीइ निसीइत्ता, अप्पणो उत्तरपुरच्छिमे दिसीमाए अट्ठभद्दासण।ई सेअत्रत्थपच्चुत्थयाई सिद्धत्थकय मंगलोत्रया राई रयावे, रयावेत्ता अप्पणो अदूरसामंते नाणामणिरयणमंडिग्रं अहिश्रपिच्छणिजं महग्धवरपट्टणुग्गयं सहपट्टभचिसयचिचाणं ईहामित्र उ सभतुर गनर मगरविहगवालग - किन्नररुरुसरभचमरकुंजरवण लयपउमलयभत्तिचित्तं अभि तरिअं जवणिअं अंछावेइ, श्रद्धावित्ता नाणामणिरयणभत्तिचित्तं अत्थरयमिउमसूरगो (च्छ ) त्थयं से अवत्थपच्चुत्थयं सुम अंगसुहफरिसगं विसिद्धं तिसलाए खत्तिआणीए भद्दसणं यावे, रयावित्ता कोबिअपुरिसे सहावेह, मदाता एवं वयासी ||६४ || खिप्पामेव भो देवाप्पि -
अगमहानिमित्तत्तत्थधारए - विविहसत्थ कुसले सुविणलक्खणपाढए सहावेह ।। तए गं ते कोटुंबिय पुरिसा सिद्धत्थे रन्ना एवं वृत्ता समाणा, हट्ट तुट्ठ० जावहियया करयल •जाव पडिसुगंति ||६|| तर गं० पडिसुणित्ता सिद्धत्थस्स खत्तिस्स अंतिचाओ पडिनिक्वमंति पडिनिक्खमित्ता कुंडग्गामं नयरं मज्झ मज्झेणं जेणेव सुविणलक्खपाढगाणं गेहाई तेणेव उवागच्छति, उवागच्छत्ता, सुविणलक्खखपाढए सदाविति ॥ ६६ ॥ तए गं ते सुविणलक्खणपाढगा सिद्धत्थस्स खतियस्स कोचिअ पुरिसेर्हि सद्दाविश्रा समाणा हट्ठ-तुट्ठ० जावहियया एहाया कयबलिकम्मा कयकोउ मंगलपायच्छता सुद्धपवेसाई मंगलाई वत्थाई पवराई परिहिया अमहग्घा भरणालंकियसरीरा सिद्धत्थयह रियालिया क
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बीर यमंगलगाणा सएहिं सएहिं गेहेहिंतो निग्गच्छति निग्गच्छित्ता, खत्तियकुंडग्गामं नयरं मज्भं मज्भेणं जेणेव सिद्धत्थस्स रन्नो भवणवरवर्डिसगपडिदुवारे तेयेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता भवणवरवर्डिसगपडिदुवारे एमओ मिलति मिलित्ता जेणेव बाहिरिया उवडायसाला, जेणेव सिद्धत्थे खत्तिए, तेणेव उवागच्छंति तेणेव उवागच्छित्ता करयल •जाव अंजलि कट्टु, सिद्धत्थं खत्तियं जएं विजएणं वद्धाविंति ॥ ६७ ॥ कल्प० १ अप्रि० ३ क्षण | तणं ते सुविलक्खगपाढगा सिद्धत्थें रन्ना - दियपूइसकारि सम्माणिश्रा समाणा पत्ते पत्ते पुव्वनत्थेसु भद्दाससु निसीयंति ।। ६८ ।। तए गं सिदूत्थे खत्तिए तिसलं खत्तियाणि जवणिअंतरियं ठावे ठात्रित्ता पुष्कफलपडिपुन्नहत्थे परेणं विणएवं ते सुवि
लक्खपाढए एवं वयासी ।। ६६ ।। एवं खलु देवा पित्रा ! अज तिसला खत्तियाणी तंसि तारिसगंसि० जात्र सुत्तजागरा श्रोहीरमाणी ओहीरमाणी इमे एयारूवे चउदस महासुमिणे पासित्ता गं पडिबुद्धा ॥ ७० ॥ तं जहा - 'गयवसह ० ' गाहा— तंएएसिं चउद्दसहं महासुमिणाणं देवापि ! उराला गं के मन्ने कल्लागं फलवित्तिविसेसे भविस्स ॥ ७१ ॥ तए गं ते सुमिणलक्खणपाढगा सिद्धत्थस्स खतियस्स अंतिए एयमहं सुच्चा निसम्म हट्टतुट्ठ० जाव हियया, ते सुमिणे सम्मं ओगिएहंति ओगिरिहत्ता ईहं अणुपत्रिसंति अणुपविसित्ता अन्नमन्नेणं सद्धिं संचालित संचालित्ता तेसिं सुमिणाणं लट्ठा गहिऽट्ठा पुच्छिऽट्ठा विचिच्छियऽट्ठा सिद्धत्थस्स रन्नो पुरनो सुमिणसत्थाई, उच्चारेमाणा उच्चारेमाणा सिद्धत्थं खत्तियं एवं वयासी ॥ ७२॥
'तर ते सुविएलक्खणपा ढगा' ततस्ते स्वप्न लक्षणपाठकाः सिद्धत्थे रना वंदिन' सिद्धार्थेन राज्ञा वन्दिताः गुणस्तुतिकरणेन पू' पूजिताः पुष्पादिभिः 'लक्कारिन ' सत्कारिताः फलवस्त्रादिदानेन ' सम्माणिश्रा समाणा ' सम्मानिताः अभ्युत्थानादिभिः एवंविधाः सन्तः पत्ते प ते पुनत्थेसु महासणेसु निसीयंति ' प्रत्येकं प्रत्येक पूर्वन्यस्तेषु भद्रासनेषु निषीदन्ति ॥ ६ ॥ ' तर णं सिद्धत्थे खत्तिए ततः सिद्धार्थः क्षत्रियः ' तिसलं खत्तिआणि ' त्रिशलां क्षत्रियासीं ' जवणिअंतरियं ठावे' यवनिकान्तरितां स्थापयति 'ठावित्ता' स्थापयित्वा पुष्फफलपडिपुन्नहत्थे ' पुष्पैः प्रतीतैः फलैर्नालिकेरादिभिः प्रतिपूर्ण हस्तौ यस्य स तथा यतः - " रिक्तपाणिने पश्येच्च, राजानं देवतं गुरुम् ॥ निमित्तशं विशेषेण, फलेन फलमादिशेत् ॥ १ ॥ " ततः पुष्पफलप्रति पूर्णहस्तः सन् परेण विराए
' उत्कृष्टेन विनयेन ते सुविणलक्खपाढए तान् स्वप्नलक्षणपाठकान् ' एवं वयासी' एवमवादीत् ॥ ६६ ॥ कि
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