Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश-वन्दन
कोटि कोटि वन्दनारे... mopopीकिक
वेसही अर्थों में मुनि थे....
संव-वृत्ति एक ऐसी कसौटी होती हैं, जिस पर मनुष्य के धैर्य, साहस, संयम, सहनशीलता, शांति तथा संतोष की परख होती है। साधु वृत्ति धारण करके धनुष्य को सभी वासनाओं और कामनाओं का उन्मूलन करना पड़ता है। एक सामान्य व्यक्ति के लिए ऐसा कर पाना कठिन होता है। इन्द्रियों को वश में रखना तो और भी कठिन होता है, किन्तु जो मुनि होते हैं उनके लिए कुछ भी असंभव नहीं है। वे अपनी इच्छाओं का विरोध करते हैं, मन और इन्द्रियों को अपने नियंत्रण में रखते
तभी उनका मुनि तत्व सार्थक भी होता है। हमारे परम पूज्य गुरुदेव आचार्य श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. भी सही अर्थों में मुनि रत्न थे। उन्होंने अपने मन और इन्द्रियों को अपने वश में कर लिया था। वे सद्गुणों के भंडार थे। ऐसे परम कृपालु गुरुदेव की छत्रछाया सदैव बनी रहे, यह प्रत्येक गुरुभक्त की इच्छा रहती है। आज गुरुदेव भले ही हमारे बीच नहीं हैं, किन्तु उनकी कृपा और आशीर्वाद सदैव हमारे साथ है।
मैं परम श्रद्धेय गुरुदेव के श्री चरणों में वंदन करते हुए उनके दीक्षा शताब्दी के अवसर पर प्रकाशित होने वाले स्मारक ग्रंथ के लिए हार्दिक मंगल कामनाएं प्रेषित करता हूं।
जातकार शासककाम
प्रार्थी
पारसमल घेवरचन्दजी वजापत पनि वकालकामगीर
आहोर - तनकु (हैदराबाद) ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण' श्री मोहनखेड़ा तीर्थ प्रधान सम्पादक
श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ NERENEWANANENENENENERENENENENINEWwNeN8R2 (35) RENERENERVIBRARYNENENENBNBABNANENEResese
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