Book Title: Yatindrasuri Diksha Shatabdi Samrak Granth
Author(s): Jinprabhvijay
Publisher: Saudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
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- यतीन्द्रसूरिस्मारक ग्रंथ : सन्देश- वन्दन -
कोटि कोटि वन्दनारे.....mpopीकांत
परम दयालु गुरुदेव.....
व्यक्ति जैसा होता है, वैसा हमें दिखाई नहीं देता और जैसा दिखाई देता है, वैसा होता नहीं है। यह एक सामान्य कहावत जैसी बात है, किन्तु है सत्य। नारियल को ही ले लें। उसके बाह्य स्वरूप में तो वह खुरदरा और कठोर दिखाई देता है, किन्तु अंदर से सुकोमल और सुमधुर होता है। यही बात गुरुदेव साहित्य मनीषी, व्याख्यान वाचस्पति पू. आचार्य भगवंत श्रीमद्विजय यतीन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के संबंध में भी कहीं जा सकती है। दूर से देखने पर तो वे हमें कठोर से दिखाई देते थे।
उनके समीप जाने में भी एक अज्ञात सा भय प्रतीत होता था, किन्तु जैसे ही उनकी सेवा में पहुंचे कि वह भय न जाने कहा चला जाता। उनकी कठोरता के स्थान पर सुकोमलता दिखाई ही नहीं देती महसूस भी होती । गुरुदेव परम दयालु थे। वे बाहर से भले ही कठोर दिखाई देते हों, किन्तु दया
और करूणा का निर्झर उनके अन्तरमन में सदैव बहता रहता था और दीन-दुखियों, असहायों की यथासमय सहायता भी करवाते रहते थे। ऐसे परम करूणा सागर गुरुदेव की स्मृति तो सदैव बनी रहती है।
उनकी दीक्षा शताब्दी वर्ष के उपलक्ष्य में प्रकाशित होने वाले स्मारक ग्रंथ के लिए मैं अपनी ओर से हार्दिक मंगल कामनाएं प्रेषित करता हूं। परम पूज्य गुरुदेव के श्री चरणों में कोटि-कोटि वंदन।
बोडीकिगणक
प्रति,
सुमेरमल सोहनराजजी वाणीगोता ज्योतिषाचार्य मुनि श्री जयप्रभविजयजी 'श्रमण'
आहोर - भीवण्डी श्री मोहनखेड़ा तीर्थ
शिवा प्रधान सम्पादक
श्री यतीन्द्रसूरि दीक्षा शताब्दी स्मारक ग्रंथ NENENINDNENESEENERYNEINENERENERUNGNENES2 (33) BenaNPRENENERUNBNENBIBNESNENERARUNBNBN828
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