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वीरस्तुतिः। -
वैश्य___ जो खेती करता है, न्याय नीतिसे व्यापार करता है, पशु । करता है, सदैव न्यायका पक्ष लेता है, जन समाज की सेवा मे तत्पर है दानके अर्थ सब प्रकारके धातुओंका अनुकूल-आर्य वृत्ति से संग्रह - जानता है, वह ब्राह्मण वैश्यके समान है। शूद्र
जो लाख और तैलका क्रय, विक्रय करता है, व्याज खाता है; मदिरा वेचता है, वह शुद्र ब्राह्मण है, विलाव
जिसे भक्ष्याभक्ष्यका ज्ञान नहीं है, जो गाने बजानेका काम करत परस्त्री गामी है, वह ब्राह्मण विलाव प्रकृति का है। म्लेच्छ
वावडी, कुँवा, तालाबसे जो अनछना पानीका व्यवहार करता परके आत्मसंबन्धी दुःखको न जानता हो, वह म्लेच्छ ब्राह्मण है। चाण्डाल
जो जंगलमें आग लगा कर खेती करता है, जो हरेक जीवको डालता है, अहिंसा धर्म से अनभिज्ञ है, वह विप्र चाण्डाल है। खर
शास्त्र अध्ययन और जप तप आदि अध्यात्मीय पट् कर्म करना जानता है, मृतक के घर आहार करता है, उसे खर-ब्राह्मण समझना चाहि अयोग्य ब्राह्मण
जो अन्यके दोषोंको प्रगट करता है, और अपने पापको छुपा देत वह ब्राह्मण धर्मके अयोग्य है, उसका जीवन कुत्ते की पूंछ की तरह व्यर्थ ब्राह्मण-परम्परा
जन्म कालमें वह शुद्ध रहता है, गुण वृद्धि पाकर द्विज होता है, श भ्यास करनेसे विप्र है, और वह अध्यात्मयोग तथा ब्रह्मज्ञान पाकर प्र हो जाता है।