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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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लिए मानो वज्र और आगको फेंक रहे हैं।" “जो पुण्यकी अभिलाषासे दिन भर तो खूब भूखे रहते हैं, और रात पड़ने पर खाने लग पडते है वे फलदार लताको पुनः फलकी इच्छासे मानो काट रहे हैं।" "जो पुरुष दो घडी दिन चढे तक सवेरे नवकारसी तप रखते हैं, और दो घडी दिन रहनेपर चरम प्रत्याख्यान कर देते हैं, वे एक मासमें मानो दो उपवासका फल प्राप्त कर लेते हैं।" “रातमें खानेवालोंको ये सामग्रिए मिलती हैं, उन्हें रोग और शोक युक्त तथा कलह करनेवाली राक्षसीकी तरह डरानेवाली स्त्री मिलती है, महापापसे उत्पन्न अन्तराय-दु ख देनेवाली कन्या प्राप्त होती है, पुत्र व्यसनी और काले सापकी तरह डरावने होते हैं, घरमें दरिद्रता रहती है, छिद्रान्वेषक नीचपुरुषकी लक्ष्मी की तरह संकट रूप अन्धकारसे परिपूर्ण घर होता है। नीच जातिमें पैदा होकर नीच कर्म करने पड़ते हैं । समभाव-सत्य-शील-निर्लोभताका अभाव रहता है, अन्यका अनिष्ट करनेवाले दुर्जनकी तरह अनेक दुःख देनेवाली व्याधिसे घिरा रहता है। समस्त दोषोंके समूहसे पीडित रहता है । इत्यादि अनेक दोषोंकी उत्पत्ति हो जाती है।"
मजलते हैं, रोग र सब प्रकारके आन्तरिक सम्पत्तुिर नर आदि
रात्रि भोजन त्यागने वालोंके गुण-"कमल पत्रके समान आखोंवाली, प्रिय वचन बोलनेवाली, मनोहर लक्ष्मीकी समानता रखनेवाली स्त्री उसे प्राप्त होती है, कला और विद्याकी खान, पुण्यकी पंक्तिकी तरह सुन्दर शरीरवाली, कन्या मिलती है ।" "व्यसन प्रवृत्तिसे रहित चन्द्रमाकी भाति उसके घर निर्मल चरित्रवान् पुत्र होता है। इन्द्रके मन्दिरकी तरह अन्धकार रहित प्रचुर रत्नोंसे शोभित मकान मिलते हैं। स्थिर वैभव पाते हैं, वाञ्छित पदार्थ मिलते हैं, रोग रहित सुन्दर शरीर धर्मसाधनके लिए प्राप्त होता है, अधिक क्या कहा जाय उसे सब प्रकारके सुख समूह प्राप्त होते हैं।" "इसके अतिरिक्त ज्ञान-दर्शन और चरित्रकी आन्तरिक सम्पत्तिसे मी उसका आत्मा अलंकृत होता है, १४ ब्रह्माण्डोंका पति होकर सुर-असुर नर आदि के पूजनीय होते हैं, वैभवके पानेका इन्हें अहंकार भी नहीं होता, न्यायसे धन कमाते हैं, कर्मशूर होते हैं, रात्रि-भोजनसे विमुख और लागिओको ये सामग्री संयोग म्मेलते हैं ।" "वे वान्धवों द्वारा पूजित होते हैं, जिनकी पुत्रादि द्वारा ख्व सेवा होती है, नीरोग होते है, लक्ष्मी जैसी शर्मीली बुद्धिमती स्त्री