Book Title: Veerstuti
Author(s): Kshemchandra Shravak
Publisher: Mahavir Jain Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 387
________________ संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता ३६१ कई नवीन वातोंके अचरज साधकपुरुष वयं देखने लगेगा, और 'ज्यों ज्यों इससे भी अगाडी वढ़ेगा त्यों त्यों उस साधकको अलौकिक आनन्दकी अंश अशमें प्राप्ति होगी। ज्यों ज्यों दृष्टिको जीतता जायगा त्यों त्यों उसका मन शांत होता जायगा और दृष्टिके जयमें मनका भी जय होता है। अधिकतर आखकी भवोंपर दृष्टि रखना इसीलिये सूत्रोंमें भी बताया है। । "एग पोगलनिविदिठि।" 'एक पुद्गलपर दृष्टिकी स्थापना करे।" ___ इस प्रकार ध्यानकी प्रक्रियाएँ महात्मा पुरुषोंके पास सीखनी चाहिये । जब एक घंटा तक दृष्टिविजयका अभ्यास हो जाय तदनन्तर साधकको चाहिये कि दिनके पहले भागमें किसी सुन्दर पहाडके शिखरपर या वृक्षकी चोटीपर दृष्टि जमाना चाहिये । रात्रिमें चान्द या शुक्र तथा मंगल तारेपर नजरको जमाना चाहिये। यह प्रयास ज्यों ज्यों वढेगा त्यों त्यों प्रकृतिके प्रत्येक पदार्थकी ओर पवित्र प्रेम उत्पन्न होगा, और सृष्टिके प्रत्येक अंशमें वीतरागताका प्रकटीकरण होगा। परन्तु यह प्रयास भी एक घंटा तक रखना चाहिये इसके अनन्तर सृष्टिके चाहे जिस भागपर दृष्टि डालोगे तब एकदम वह वहीं स्थिर हो जायगी, और शरीरके कोथलेमेंसे दु ख निकल कर भागेगा, इस कक्षापर पहुंचनेपर साधकको तुरन्त प्रभु नामका भावना नामक जाप परम प्रेम पूर्वक शुरू कर देना चाहिये। जापमें इच्छानुमार शब्दोच्चार या 'नमो अरिहंताणं' 'जपना चाहिये । परन्तु कुछ समयके पश्चात् नमो पद आपसे आप उह जायगा, और आत्मा अर्हन् प्रभुमें एकाकार हो जायगा। प्रति समय यथावसर पाकर हिलते, चलते, उठते, वैठते, सोते, जागते वह ध्यान दिमागसे न निकल सकेगा। साझ, सवेरे, मध्यान्ह और रात्रिमे योगकी क्रियाका आरम्भ रखकर जाप जपते रहना आवश्यक है। एक ओरसे योग क्रिया द्वारा सद्भावनाकी दृढता और दूसरी ओरसे जाप, इन दो साधनोंके मिलनेसे मन एकदम शान्त हो जायगा। क्योंकि-"मणो साहसिओ भीमो, दुठस्सो।" मनरूपी घोडा साहसिक और भयंकर दुष्ट है। "इन्दिय चवल तुरंगो" इन्द्रियोंके घोडे अधिक बलवान् होते हैं, परन्तु इस-प्रयाससे उनकी मस्ती निकल जाती है, और वे शान्तिमय हो जाते हैं। इस प्रकारके सयोगोंमें साधककी विवेक दृष्टिमें अत्यन्त सूक्ष्मदृष्टि हो जायगी तथा साथ-साथ आनन्दकी वृद्धि भी। यह साधना सन्तोष जनक होनेपर साधकको अपने योगकी

Loading...

Page Navigation
1 ... 385 386 387 388 389 390 391 392 393 394 395 396 397 398 399 400 401 402 403 404 405 406 407 408 409 410 411 412 413 414 415 416 417 418 419 420 421 422 423 424 425 426 427 428 429 430 431 432 433 434 435 436 437 438 439 440 441 442 443 444 445