Book Title: Veerstuti
Author(s): Kshemchandra Shravak
Publisher: Mahavir Jain Sangh

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Page 392
________________ ३६६ . .. वीरस्तुतिः। ' . . "पापानुवंधी पुण्यवान्" समझा जाता है। इसीलिये कि इस समय पूर्वपुण्यके कारण सुखी है और वर्तमान् पापके कारण भविष्यमें दु:खी होगा। कितनेक मनुष्य धर्मी होते हैं, अच्छे कार्य करते हैं, पुण्य भी करते हैं, तथापि दु.खित क्यों है ? ___ इसका कारण यह है कि पहले उन जीवोंने पाप किये थे, अतः वर्वमानमें दुःख भोगते हैं, इतनेपर भी शुभ कार्य करते हुए इस समय पुण्य बांध रहे हैं । अतः वे आगे सुखी होंगे। ऐसे मनुष्योंको शास्त्र में 'पुण्यानु. बंधी पापी' कहा है। इसीलिये कि भूतकालके पापके कारण दुःख भोगे रहे हैं, परन्तु वे वर्तमानके पुण्य कार्यके द्वारा भविष्यमै सुख भोगेंगे। . ' तव क्या वर्तमान कालमें कोई मनुष्य दुःखको भोगता हो और उसे भविष्यमें भी दुःख भोगना पडे क्या ऐसा भी कोई नियम है ? हां हां क्यों नही, बहुतसे मनुष्य पूर्वके पापके कारण इस समय दुःखोंको भोगते हैं इतनेपर भी इस समय अन्य जीवोंको दुःख देते हैं तो वे अगले जन्मोंमें भी दुखी ही होंगे। ऐसे मनुष्योंकी शास्त्रमें क्या संज्ञा बताई है ? वे 'पापानुवंधी पापी' अर्थात् पूर्वजन्ममें पाप किया था उसका फल तो भोग रहे हैं, और इस समय पाप करते हैं अगाडी उसका दु.खरूप 'फल भी भोगेंगे। तव क्या यह भी हो सकता है कि इस समय सुखी हो और आगे भी सुखी ही रहे? हां यह भी हो सकता है, भूतकालमें जीवने अन्य प्राणियोंको सुख देकर पुण्य वाधा है, वे अव सुखी हैं, और अव पुण्य बांधकर भविष्यमें भी सुखोंका ही उपभोग करेंगे। ऐसे पुरुषको शास्त्रमें क्या कहा है ? इसे 'पुण्यानुवंधी पुण्यवान्' कहा है, क्योंकि पहले पुण्य करनेसे अव सुखी है, और वर्तमानमें पुण्य करता है जिससे आगे भी मुख ही पायगा। सार-यों कमाके चार प्रकारके अनुबंध होते हैं, 'अनुबंध का अर्थ वहे बंध है जिसका फल आगे भोगा जाता है। अच्छा अनुबंध होनेपर

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