Book Title: Veerstuti
Author(s): Kshemchandra Shravak
Publisher: Mahavir Jain Sangh

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Page 398
________________ पढता हवा हो, मला जो होना है रहगा, जो जिमहगा, जिस माह, सम ३७२ वीरस्तुतिः। " जाता । तदबीर किसी तरह किसीकी 'नहीं चलती, मौत ऐसी वला है के जो टीले नहीं, टलती ॥ १० ॥ सदक़ा कोई देता है के कुछ रद्देवला हो, पढ़ता है अमल कोई के तासीर दुआ हो। कहता है तबीवोसे के कुछ ऐसी देवा हो, झूठा किसी सूरतसे कहीं हुक्मकजा हो । होनी की मगर कोई दुआ है न दवा है, जो होना है आख़िरको वही होके रही है ॥ ११ ॥ फितरतका तकाज़ा है के होकर ही रहेगा, जो जिसने किया है उसे भोगेगा सहेगा । कुछ डर नहीं काफिर जो मुझे कोई कहेगा, जिस रुखपे वहाँ जाता है दरिया वह वहेगा। हामी कोई वंदा है किसीका न खुदा है, समरह है उसी फेलका जो जिसने किया है ॥ १२ ॥ अज़तराबे दुनिया (संसारता) इस पर भी तो दिल वक्फे तमन्ना व तलव है, राहत जिसे कहते हैं मयस्सर ही वह कब है। इक आरजू सौ रंजो मुसीवतका सवव है, और हसरतें लाखों हैं फिर एक एक गज़व है। वह कौन है ? जो शौक का शेदा नहीं होता, किस दिलमें यहा खूनेतमन्नी नहीं होता ॥ १३ ॥ मुफ्लिसको अगर गम है के रोटी नहीं घरमें, ज़रदार है मुजतर हविसे दौलतो जरमें। इक दर्दकी तखीर है इक जौके दिगरमें, राहत न इसे है न उसे आठ पहरमें । इक आख तो फर्ज़न्दके अरमानमें नम है, औलादकी कसरतसे कहीं नाकमें दम है ॥ १४ ॥ आराम समझता है कोई मालकों जरको, कन्धे लिए फिरता है कोई दुख्तोपिसर को। रोता है कोई फुरकृते मंजूरनज़रको, तामीर कराता है कोई गुम्बदोदरको। यह मेरा है में इसका हूं यह मान रहा है, दुख दर्दके सामानको सुख जान रहा है ।। १५ ।। दिल शौकसे रंजूर है और शौक फ़िजूं है, आखोंमें जो नम है किसी अरमानका खू है। राहत जिसे कहते हैं वह इक सबोसकू है, हाल आपना मंगर फरतेतमन्नी से जवू है। इक आरजू पूरी हुई सौ करगई पैदा, आराम किसी शक्लसे मिलने नहीं पाता ॥ १६ ॥ दुनिया और वहम हमदर्दी (अन्यत्वता) हर आत्मा दुनिया अकेली है अजलसे, । पावंद तनासुख है मगर. वंद अमलेंसे । मर मरके कहीं-छुटती है यह कैद हमलसे, इक कुश्तीसी लडती हुई आती है अजलसे । बीमारीमें आजिज़ रही दरमा तलवीसे, जव मरती है तो पाती है दुखजां वलबीसे ॥ १७ ॥ सब झूटे ताल्लुक हैं गलत दावए उल्फत, कहनेकी मुहब्बत है दिखावेकी रिफाकृत। बीमारी हो या

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