Book Title: Veerstuti
Author(s): Kshemchandra Shravak
Publisher: Mahavir Jain Sangh

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Page 399
________________ याकाशलाजत मंजर न लाजत संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता ३७३ मौत हो या दौरे मुसीबत, मुमकिन ही नहीं उसमें किसी गैर की शरकत । मुंह तकते हैं हैरतसे मदद कर नहीं सकते, मा बाप भी बेटेके लिए मर नहीं सकते ॥१८॥ अलेहदगी बेइलायकी और तनहाई (एकत्वता) ये महलोमकां हमने जो तामीर किए हैं, यह ऐशका सामान के दम जिसपे दिए हैं । यह लालो गुहर औरोंसे जो छीन लिए हैं, औलाद के जिसके लिए मर-भरके जिए हैं। हम जायेंगे ये साथ न जायेंगे हमारे, ये हमसे जुदा हैं यहीं रह जायँगे सारे ॥१९॥ यह रूप यह रंग और यह नकशा ये खत व खाल, है नूरके साचे में ढला आइने तमसाल । गो रूहसे मखलूत नज़र आता है फ़िलहाल, लेकिन है जुदा जानसे यह जानका जंजाल । यो आत्मा इस पैकरेखाकी में वसा है, है आइनेमें अक्स मगर उससे जुदा है ॥२०॥झापाकी और गिलाज़त [अशुचिता] यह पैकरेखाकी के हर इक जिसपे फिदा है, हर शख्सको मंजूर नज़र जां से सिवा है। कुछ गोश्त है कुछ खून है वलगमसे भरा है, इक ज़रफे गिलाज़त है जो झिल्लीसे ढका है । बोल और निजासतके सिवा ख़ाक नहीं है, नापाक है इतना के कमी पाक नहीं है ॥२१॥ मशहूरे ज़माना हो जो हुने नमी से, दिल छीन लिया करता है जो शक्लेहसीं से। उसके हो कोई ज़ख्म कटे जिस्म कहीं से, फव्वारह छुटे पीपका और खूका वहीं से। देखे न नज़र चाहनेवालोंकी पलटके, मक्खीके सिवा गैर कोई पास न फटके ॥ २२ ॥ आमद-ज़र्राते अमल [आस्रवता] कर देते हैं ज़र्राते अमल कहको नाचार, फल देके ही टलते हैं ये भगयार सितमगार । गो कर्म हैं दो किस्मके बदकारो निकोकार, होना ही मगर इनका है सद वाइसे आज़ार । इक इक नुकए रूहपे बैठे हैं हज़ारों, उठता है अगर एक तो आजाते हैं लाखों ॥ २३ ॥ जो टलता है वह खूब झलक अपनी दिखाके, गेज़ो गज़लो किबसे दीवाना बनाके । जज़बो कशिशे जंगे अमला हदसे वढाके, खुद छोडता है लाखके फंदोंमें फंसाके । वंधती है घोही रूह इस आमदसे अमलकी, गर्दिश नहीं मिटती के यह है रोज़ अज़लकी ॥ २४ ॥ सदवाव [संवरता] अव जव कमी इस मोहका कुछ ज़ोर घटा हो, खुश तालईसे दुश्मनेजां जर हुआ हो। उस वक्त कोई रहवरे हुक राहनुमा हो, तव रूहका कुछ होश ठिकाने हो वजा हो जाते ही न दे ध्यानको गैरोंकी फिज़ामें, रोके रविशेइल्मको खुद उसकी ज़ियामें ॥ २५ ॥ ज़र्राते अमलका इख़राज[निर्जरा काफूर शवे कुल झे मिटजाए जहालत, तावां

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