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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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बन जायगा। सब जगह ईश्वरभावको स्थापन करता हुआ अति प्रेममय बनकर, प्रेमकी दृष्टिसे विश्वका दिन रात अवलोकन करनेसे सहजानन्द प्रगट होता है, और वह वीतराग हो जाता है। - पहले कहे गये प्रमाणानुसार साधकोंके लिये थोडी सी प्रक्रियाएँ संक्षेपमें वताई गई हैं। इन्हें विचारकर तथा उसी प्रकार मनन करनेसे अवश्य अलभ्य लाभ होगा। तथा अपरिमित सामर्थ्य पा सकेगा। योगका विषय अत्यन्त विशाल और गहन है, और इसे गुरुगमकी साक्षी विना सीख भी नहीं सकता। हठयोग, मंत्रयोग, लययोग और राजयोग इस भाति योग चार प्रकारों में विभक्त है। यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि ये योगके आठ अग है, और इनमें प्रत्येकको उत्तरोत्तर एकको एककी अपेक्षा है। प्राणायाम कई प्रकारोंसे हो सकता है, परन्तु उनमें पूरक, कुंभक और रेचक मुख्य हैं, भस्रिका आदि प्राणायाम भी उपयोगी हैं। प्राणायामको सहायता देनेके लिये नेति अर्थात् नाकमेंसे डोरा पिरोकर मुखद्वारसे निकालना; तथा धोती अर्थात् कपडेको पेटमें उतारकर मलका निकालनाः नौली अर्थात् नलोंको घुमाकर फिराना, वस्ति यानी गुदासे मल साफ करना, तथा कपालभाति गजकरणी आदि हठयोगकी अनेक क्रियाएँ होती हैं। इसी प्रकार खेचरीमुद्रा, महावन्धमुद्रा, वज्रमुद्रा इत्यादि मुद्राएँ गुरुगमके विना न कर सकनेके कारण प्राणायाम आदि की वातें फिर बताई जायँगी, क्योंकि वे वस्तुएँ भी विशेष ज्ञेयरूप हैं । अत. उनको महात्मा पुरुषोंकी संगतिमें रहकर सीखना चाहिये । योगसे बढकर संसारमें कोई अन्य विद्या उत्तम नहीं है । जो पुरुष योगकी साधना करेंगे अन्तमें वे परमपदको पायेंगे, और कर्मोंसे मुक्त होंगे। अतः उनको कर्मबंधके चार प्रकार समझना चाहिये जिनके ये प्रमेद हैं।
कर्मवन्धके ४ प्रकार और दुःख सुख इस समय भनेक मनुष्य नाना पाप करते देखे जाते हैं तथापि वे सुखी क्यों हैं ?
उन्होंने पुण्यरूपी वीज बोये थे, इसीलिये आज वे उनके सुखरूप फलोंको खा रहे हैं, परन्तु इस समय अन्य जीवोंको दुख देकर पापके वीज चोते हैं, इससे भविष्यमें इसके अनन्तर उनके फल उन्हें दुखरूप होंगे। इस प्रकार जो मनुष्य सुखी होकर भी पापिष्ठ होता है वह मनुष्य