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संस्कृतटीका - हिन्दी - गुर्जर भाषान्तरसहिता
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आयुर्वेदमें रात में खाना पीना मना है
"सूर्यके अस्त हो जाने पर हृदयकमल और नाभिकमल अतिशय सकु - चित हो जाते है, अत रातमें भोजन न करना चाहिए, क्योंकि अनेक सूक्ष्म जीव खाए जाते हैं, और रातमें खाया गया भोजन स्वास्थ्यकर नहीं होता, और भलि भान्ति जाठरी में जाकर उसका पाक-भी नहीं बनता ।"
" जो दिनरात वे समय खाने पीनेमें ही मस्त रहता है वह बिना सींग पूंछ का पशु समान है । अत. मनुष्यको दिनमें भी नियमित भोजी-भोजन संयमी होना चाहिए ।"
दो घडी दिन चढे तक तथा दो घडी दिन रहने पर जो भोजन पान त्याग देता है, वह रात्रिभोजनके दोषोंको जाननेवाला पुण्यका भागी होता है ।"
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" जिसने दिनमें भोजन करनेका अभ्यास या रिवाज तो डाल लिया है, मगर प्रतिज्ञा नहीं ली है तो क्या उसे निवृत्ति रूप पुण्य नहीं मिलता ? इसका उत्तर यह है कि- किसीने रकम तो कर्जमें देदी है मगर व्याज नहीं खोला है, अत वह वसूल करते समय व्याज लेनेका हकदार नहीं होता क्योंकि दुनियादारोंमें बोलीका मूल्य है ।"
“जो दिनमें भोजन करना त्याग कर रातमें ही खाना पसद करता है, वह मानो माणिक्यको छोडकर काचके टुकडेको पसद करनेवाला जड बुद्धि है ।"
“दिनके होते हुए भी जो कल्याणकी इच्छासे रात्रिमें भोजन करते हैं वे सुन्दर और कमाए हुए 'खेत' को छोड कर मानो खारीली - नमकीन रेहीदार भूमिमं धान्य वोना चाहते हैं ।"
“रात्रिमें खानेसे उल्लु काक- विलाव- गिद्ध-राक्षस साप-विच्छ्र-गोह-चमगीदडबागुल आदि अनेक बुरी योनिऍ पाते हैं ।
" जो पुरुष रात्रि भोजन त्याग देता है वह धन्यवादका पात्र है, क्योंकि वह अपनी आधी आयु उपवासमें बिता रहा है ।"
"रात्रि - भोजनके त्यागमें जो जो गुण हैं, उनके विषयमें अधिक क्या कहा जाय उसके सब प्रकारके लाभ सर्वज्ञ ही जानते हैं ।"