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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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पणो भायो इस्यो, पाम्यो केवल ज्ञान ॥ ८॥ मोक्ष नगर का दायका, भगवान् श्रीमहावीर, तेहना मुख आगल हुआ, गौतम स्वामी वजीर ॥ ९ ॥ मोटा जिन -शासन धनी, पहोंचा शिवपुर अम । गौतम लब्धि तणा धणी, जगमें राख्यो नाम ॥ १० ॥ तिन कारण मंगलीक दिन, नाम जपो. मनवीर । आरंभ समारम छोडिने, निर्मल पालो शील ॥ ११॥ वार २ मानुष देही, पामसी नहीं रे गवाँर, डोरा डांडा राखडी, मंत्र यंत्र निवार ॥ १२॥ झाडा झपटा मत करो, मत करो'षट् काय घात, चार जाप जपो भला, मोटी दिवाली की रात ॥१३॥ काया रूपी देहरो, ज्ञान, रूप जिन देव, तस सज्झाय शंखझल्लरी, कर सेवा नितमेव ॥ १४ ॥ दया रूपी दिवलो करो, सवर रूपी वात, सिमकित ज्योति उजाली,ने, ज्यों मिथ्या तम नश जात ॥ १५ ॥ संवर रूप करो ढाकणो, ज्ञान रूपी करो तेल, माठ कर्म प्रज्वलित करो, घोर अंधेरो ठेल ॥१६॥ काया हाट तेल जालणो, ज्ञान वस्तु महिं सार, स्मरण करो जिनराजनो वाणिज्य परउपकार ॥ १७ ॥ धीरज मन धर धूपणो, तप कर अगरज खेय, सरघाधूप ज्ञान जल थकी, इम सेवा निजदेव ॥ १८॥ सीमंधर भादि देइने, जघन्य जिनेश्वर वीश, अढाई द्वीपमें परगट्या, उत्कृष्ट एकसो सितेर ॥ १९ ॥ मजन करो भगवान् को, ज्यूं थारो सुधरे काज, काल अनन्त गयो वृथा, अवसर लाघ्यो हाथ ॥ २० ॥ हिंसा से देव राजी हुए, भोला! यह मत भूल, साचोमन नवकारनो, एम चढावो फूल ॥ २१ ॥ दुख. कोईने देणो नहीं, प्रवचन सामो निहार, जिनवरना गुण ग्रूथिने, ऐसी चढाओ माल ॥ २२ ॥ द्वानशील-तप भावना, मनवच काय सुध्याय, ज्ञान दर्शन-चरित्रना, यह तू भक्षत चढाय ॥ २३ ॥ करण करावण अनुमोदना, हणवो जीवन कोय, नव तत्व धारो निर्मला, एहवो नैवेद्य होय ॥२४॥ अवली गतासंसारनी, घन लक्ष्मी को काज। टिचकारा करता थकां, धीठाकूटे छाज ॥ २५ ॥ टिचकारी फरता थकां, दाव पाछा -धीरे जाय, लक्ष्मी इम करता थकां, किम पैसे घर साय॥ २६ ॥ लीपणो ढोलणो मांडणो, करो जीवारो जतन, भव भव माहि. द्रोहिलो,मानवासव रतन - २७: वाणी श्री जिनादेवकी, मुख नेमाडे सत गाय यमाकरजोजुगतास्यु, ज्यों शिवामंगलाथामा२४॥ माख्यो दिवाली दिन मोटको, । वाधे पापना पूर । इमाकरता रे प्राणिया, शिवपुर करे दूर ॥ २९ ॥ ज्ञान रूपी दिवलो.करो, तपस्या कर उज्वोल, नियम ब्रत कर