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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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विग्रहादि उपद्रव नहीं उठता । (३१) पहलेका फैला हुआ व्याधि रोगादिक नष्ट :: होजाता है। (३२) वलवान् दुर्यलको नहीं सताता । (३३) पुराण रोगकी . उपशान्ति होजाती है। (३४) नवीन रोगका संवरण होजाता है। र ३५ वाणी गुण
(१) सुन्दर सस्कारित भाषा होती है। (२) वर उच होता है । (३) भाषा ग्रामीण और सादी होती है। (४) स्वर और भापोचारणमें गंभीरता होती है । (५) वोलते समय ध्वनि निकलती है । (६) वाणी सरन होती है। (७) राग युक्त भाषा होती है । (८) सूत्र योडा और अर्थ अधिक होता है। (९) वाणीमें पूर्वापर विरोध नहीं होता। (१०) सन्देह रहित मिन्न २ अर्थ प्रकाशन होता है । (११) निदशकित गुण दाता है । (१२) वाणी
अकाट्य युक्ति युक्त होती है। (१३) चित्त अन्यथा न होकर स्थिर होजाता - है, अत वाणी आकर्षक होती है। (१४) वाणी देश और कालसे उचित संबंध र रखती है । (१५) अधिक विस्तृत होकर भी अनमेल या अरुचिकर नहीं होती। पर (१६) जीवादि वस्तु विचारका ज्ञान कराने वाली भाषा होती है। (१७) उपदेश न करते समय किसीका मर्म प्रकाश नहीं करते। (१८) भाषा पूर्वापर सापेक्ष प्रद होती है। (१९) आख्यायिकाकी तरह वाणी मनको प्रेमास्पद बना देती है। नई (२०) भाषा मधुर और अनादिकालकी भूख मिटाने वाली होती है। (२१) पर उनकी श्रद्धेय भापा खयं सिद्ध होती है। (२२) वस्तुका वास्तविक ज्ञान प्रकट न कराती है। (२३) परनिन्दा रूप और अपनी प्रशसा रूप भाषा नहीं होती। अ (२३) प्रशंसनीय भाषा होती है । (२५) वोलते समय अधिक कालक्षेप नहीं
करते। (२६) चित्तको सन्तोष होता है। (२७) व्याख्यान मध्यम गतिका होता है । (२८) श्रोता कर्म रोगसे मुक्त हो जाता है परन्तु मनन करने
पर । (२९) वाणी अनादि कालकी भ्रमणा मिटाती है। (३०) जिसका वर्णन __ करते हैं उसका संक्रमण उसी विशेष रूपसे करते हैं। (३१) उनकी भाषा वचनान्तर नहीं होती । (३२) पद, अर्थ अलग २ करके वोलते हैं। (३३) सत्त्व और साहस श्रोताओंका बढ जाता है। (३४) धर्मश्रवण करते हुए लोक अघाते नहीं। (३५) जीवादिक की अविच्छिन्न प्ररूपणा करते हैं।