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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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निरूपण । जैसे "नास्ति आत्मा" आत्मा कोई खतन्त्र पदार्थ नहीं हैं, अथवा "नास्ति परलोक ", परलोक-मरणके वाद जीवका अन्य भव धारण करना वास्तविक नहीं है। इत्यादिक भूतनिन्हव है। क्योंकि इससे' सद्भूत पदार्थका अपलाप होता हैं। आत्माका परलोकमें भवान्तर धारण, करना वास्तविक सिद्ध. पदार्थ है। युक्तियुक्त और अनुभवगम्य है । इसका निषेध करना सद्भूतका अपलापनामक मिथ्या वचन है। आत्माको श्यामाकतण्डुल-सामकके चावल कीतरह छोटे प्रमाणमें बताना, अथवा अगूठेके पोरवे के बराबर समझना, या यह कहना कि-आदित्य वर्ण है, निष्क्रिय है, इत्यादि सव वचन अभूतोद्भावन नामक असत्य वचन हैं । क्योंकि इस तरहके वचनों द्वारा आत्माका जो वास्तविक स्वरूप नहीं है, उसका उल्लेख किया जाता है।
अर्थान्तर शब्दका अर्थ है मिन अर्थको सूचित करना, जो पदार्थ है उसको दूसरा पदार्थ ही वताना वास्तविक न कहना अर्थान्तर है। जैसे कोई गौको कहे कि यह घोडा है, अथवा घोडेको कहे कि यह गौ है, इस तरह के वचनको अर्थान्तर नामक असत्य कहते हैं।
गर्दा नाम निन्दा करनेका है, अत जितने भी निन्द्य वचन हैं वे सक गर्हित नामके असत्य वचन समझने चाहिए। जैसे कि-'इसको मार डालो' या 'मरजा' 'इसे कसाईको देदो,' इत्यादि हिंसा विधायक वचन वोलना, तथा मर्मभेदी-मन दुखानेवाले अपशब्द कहना, गाली देना, कठोर वचन कहना, परुषरूम शब्दोंका प्रयोग करना, एवं पैशून्य किसी की चुगली करना, आदि गर्हित वचन कहलाते हैं। यदि वे गर्हित वाक्य. कदापि सत्य भी हों तथापि असल माने जाते हैं । क्योंकि वे निन्ध हैं । तथा प्रमादयुक्त जीवके वचन भी असत्य समझे जाते हैं । प्रमाद पूर्वक कहे जाने वाले वचन असत्य होते हैं। और प्रमाद को छोडकर कहे गए असत्य वचन भी सत्य हो सकते हैं, जैसे किसी रोगी वालकको पताशेमे दवा रख कर देते हैं और कहते हैं कि-ले यह पताशा है।
सत् शब्दके दो अर्थ होते हैं, विद्यमान और प्रशंसा। अत एव असत्शब्दसे अविद्यमान और अप्रगस्तता ये दोनों ही अर्थ लेने चाहिए। सद्भूत निन्हव अमद्भूतोद्भावन और अर्थान्तर ये अविद्यमान अर्थको सूचित करनेवाले होनेसे असल हैं। और जो गर्हित वचन हैं वे अप्रशस्त होनेसे असत्य,हैं, तथा प्रमादका सम्बन्ध भी दोनों ही स्थानों पर पाया जाता है।
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