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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
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.. अम्वापाली गणिकाने सुना कि भगवान् कोटिग्राममे आगए । अम्बापाली गणिका सुन्दर-सुन्दर (भद्र) यानोंको जुडवा कर, सुन्दर यान पर चढ़ कर, सुन्दरयानों के साथ वैशालिसे निकली। और जहां वह कोटिग्राम था वहा चली । तब वह 'लिच्छवी' जहा कोटिग्राम था वहा गए ।।
"एक समय भगवान बुद्ध नादिक (ज्ञातिका) के गिझिकावसथमें विहार करते थे"
( मज्झिमनिकाय पृष्ट १२७ । चुल्ल-गोसिंग-सुत्तन्त
वैशाली कोटिग्राममे इच्छानुसार विहार कर जहां पर वैशाली का महावन है वहा गए, वहां भगवान् बुद्ध वैशाली महावन की कूटागार शाला में विहार करते थे।
उस समय बहुतसे प्रतिष्ठित 'लिच्छवि' संस्थागार-(प्रजातन्त्रसभागृह) में बैठे थे । वे सब मिलकर बुद्ध का गुण वखानते थे। धर्म का, सघ का, गुण वखानते थे, उस समय निग्गंठों का श्रावक (जैनों का श्रावक) सिंह सेनापति उस सभामें बैठा था ।............... ......तव सिंह सेनापति जहा 'निग्गंठ नाथपुत्त' थे वहा गया, जाकर "निग्गंठ नाथपुत्त' से बोला कि भते में................... .........
सिंह ? तुम्हारा घर दीर्घकाल से निगंठों के लिए प्याऊ की तरह रहा है।................................... .............................................. उस समय बहुतसे निगंठ (जैन साधु) वैशाली में एक ...........................
........................ ...... चिरकालसे यह आयुष्मान् (निगठ) बुद.......... ..... .......हैं।
'विनय पिटक' 'महावग्ग', तथा 'मज्झिम निकाय' में आए हुए इन उल्लेखोंसे हमें साफ २ मालूम हो जाता है कि 'महात्मा बुद्ध' 'महावीरस्वामी'
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