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वीरस्तुतिः ।
___ सं० टीका-स इति, वीर्यान्तरायस्य निःशेषतः क्षीणत्वात् स भगवान् वीरो वीर्येणौरसेन धृतसंहननादिवलेन प्रतिपूर्णवीर्यः, अनन्तशक्तिमानित्यर्थः । अथवोत्कर्षवत्तया प्रतिपूर्णप्रभाववान् अथवा सर्वशक्तिमान् । “सवीर्यमतिशक्तिभाक्” इति । "वीर्य बले प्रभावे चेत्यमरः" । नगानां पर्वतानां मध्ये यथा, "शैलवृक्षौ नगावगावित्यमरः" "नगः शिलोच्चयोऽद्रिश्च शिखरीति धनंजयः" । सुदर्शनो मेरुः केवलकल्प्यजम्बूद्वीपमध्ये श्रेष्ठस्तथैव गुणैर्भगवान् श्रेष्ठः । यथा सुरालयः खर्गस्तन्निवासिनां देवानां मुदाकरो हर्षकर आनन्दजनको मनोनोकूलवर्णगंधरसस्पर्शप्रभावादिगुणै राजते । एवं भगवानप्यनन्तगुणैः शोभते, विराजतेऽनेकैर्गुणैरुपेतो भगवान् वीर इति ॥ ९॥ . ___अन्वयार्थ--[से ] वे भगवान् [वीरिएणं ] वल-वीर्यसे [पडिपुण्णवीरिए] प्रतिपूर्ण शक्तिवाले थे, तथा [वा] जिसप्रकार [सुदसणे] सुमेरु पर्वत [णगसव्वसेठे] सव पहाडोंमें अवलोकनीय और महान् एवं श्रेष्ठ है, उसी प्रकार महावीर प्रभु भी सर्वश्रेष्ठ थे, और सुमेरु पर्वत जिसप्रकार [सुरालएवासिमुदागरे] देवोंको प्रसनता उत्पादक होता है उसी प्रकार भगवान् सव पाणीवर्गकेलिए हर्षदायक थे, तथा जैसे सुमेरु [ णेगगुणोववेए ] अनेक गुणोंसे शोभित है वैसेही भगवान् भी अनन्त उत्तमोत्तम गुणोंसे समलङ्कत थे ॥ ९॥
भावार्थ-भगवान्का वीर्यान्तराय कम्म विल्कुल नष्ट हो गया था, अतएव उनमें अनन्तवीर्य-अनन्त वलका प्रादुर्भाव हो गया था, जैसे सुमेरु-पर्वत सब पहाडोंमें श्रेष्ठ है उच्च है उसी प्रकार भगवान् भी शक्ति आदि गुणोंमें उच्च और सर्वश्रेष्ठ थे । तथा जिस प्रकार स्वर्ग देवोंकेलिए हर्षोत्पादक है उसी प्रकार सुमेरु भी हर्ष जनक है वैसे ही भगवान् भी प्राणीमात्रकेलिए हर्षको उत्पन्न करनेवाले थे। सुमेरु जैसे अनेक गुणोंसे-सुनहरी रग और चन्दनादि गन्ध तथा उत्तम फलोंसे शोभित होता है, भगवान् भी ज्ञान-शक्ति-सुखादि गुणोंसे विराजमान थे ॥९॥
भापा-टीका-वीर्यान्तरायका सर्वथा क्षय होनेसे भगवान् अनन्त शक्तिमान् . और धैर्य, शौर्य, सहिष्णुतादि शारीरिक वलसे वलिष्ट थे,