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संस्कृतटीका-हिन्दी-गुर्जरभाषान्तरसहिता
- संस्कृतच्छाया सुदर्शनस्येव यशो गिरेः, प्रोच्यते महतः पर्वतस्य । एतदुपमः श्रमणो शातपुत्रो, जातियशोदर्शनशानशीलः ॥१४॥
सं० टीका-भगवतो वीरस्यैतद्यशः कीर्तनं महतः पर्वतस्य सुदर्शनस्य मेरोगिरेरिव प्रोच्यते, महतः पर्वतस्यैतदुपम एतत्तुल्यः । साम्प्रतमेतदेव भगवति दान्तिके योज्यते । एषः अनन्तरोक्तमेरुगिरिरित्यर्थः, उपमा उपमानं सादृश्यप्रतियोगी यस्य स एतदुपमः। कः । श्राम्यति-तपस्यतीति श्रमणः। तपोनिष्टप्तदेहो ज्ञातपुत्रः श्रीमहावीरप्रभुर्जात्या="जातिर्जातं च सामान्यमित्यमरः ।" यशसा= कीर्त्या "यशः कीर्तिः समज्ञाचेत्यमरः ।" सकलदर्शनज्ञानचरित्रवतांमध्ये श्रेष्ठः प्रधानः । जात्यादीनां कृतद्वन्द्वानामतिशायने 'अर्श आदित्वादच्' प्रत्ययविधानेनाक्षरघटना विधेयेति भावः ॥ १४ ॥
अन्वयार्थ-[महतो] महान् [पव्वयस्स] पर्वत [ सुदंसहस्सेव] सुदर्शन [गिरिस्स ] मेरु पर्वतका [जसो] यश. कीर्ति जैसे प्रतिपादित है उसीप्रकार [पवुच्चइ ] भगवान्की कीर्ति करते हैं [एतोवमे] पूर्वकथित उपमासे' अलंकृत [समणे] श्रमण [नायपुत्ते] ज्ञातपुत्र-महावीर भगवान् [जाइजसोदसणनाणसीले ] जाति, यश, दर्शन, ज्ञान और शीलमें सर्वश्रेष्ठ थे ॥ १४ ॥
भावार्थ-भगवान्की एक देशीय उपमा तो सुमेरु पर्वतसे दीगई, और इसी प्रसगको लेकर सुमेरुका यशोगायन कियाहै, और अब फिर उपमेयकाभगवान् महावीरका वर्णन करते हैं। वे ज्ञात वंशके क्षत्रिय कुलमें उत्पन्न भगवान् समस्त जातिवालोंमें और अखिल यशखियोंमें, समस्त ज्ञानियोंमें तथा दर्शनवालोंमें और सब चरित्रनिष्ठोंमें श्रेष्ठ थे ॥ १४ ॥
भाषा-टीका-भगवान् वीरका यश सुमेरुकी सदृश महान् था, यह उपमा उनके ही ऊपर भलि भाति घटती है। वे श्रमण थे, तपसे शरीरको सोनेकी तरह तपा डाला था, ज्ञात वंशके क्षत्रिय पुत्र थे। जिनकी जाति-यश. कीर्तिसमस्त ज्ञान, दर्शन और चरित्र समन्वित है। श्रेष्ठतर तथा प्रधानतर है ॥१४॥
लाटीका भगवाना है। वे श्रमण थकी जाति-यश. काही