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वीरस्ततिः।
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ऐरावतकी तरह उच्च कोटिकी है। अथवा हाथमें जिस प्रकार नारगी सुन्दर लगती है उसी तरह प्रभु मी जगती-तल पर नारगीकी तरह भव्य प्राणिओंके हृदयोम मुन्दर लगते हैं । हरिणादिक जंगली जीवोंमें सिंह वलिष्ट होता है, इसी तरह मरत क्षेत्रकी अपेक्षा मानवसृष्टिमें वीर प्रभु सिंहकी तरह आत्म-बलसे बलवान् थे, जैसे सब प्रकारके जलोंमें गंगाजल अनेक औषधियोंसे मिश्रित होनेके कारण तिम्र्मल है, ऐसे ही प्रभु भी कर्म-लेपसे अलिप्त होनेसे अत्यन्त खच्छ हैं।
और पक्षिओंमें गरुड नामक वेणुदेव प्रधान है, इसी प्रकार निर्बाण अर्थात् जो सिद्धक्षेत्र है जहा कर्म-मलका अत्यन्त अभाव है, उसका खरूप बतानेमे
तथा उसके पानेके उपाय बताने में ज्ञातपुत्र महावीर प्रभु सर्वोपरि हैं। उनका निर्वाण सबमें उच्चकोटिका और अकाट्य है ॥ २१ ॥
गुजराती अनुवाद-जेम ऊंचा तथा सुन्दर हाथिओमा ऐरावत हाथी निष्कलंक अने उत्तम छे, केमके तेनापर इन्द्र सवारी करे छे, अथवा ज्ञान-दर्शनचरित्ररूप जे त्रण रत्नो छे, तेमां प्रभु पण हाथीनी पेठे जे ऊंचा छ, अथवा ते रत्नत्रय मनोहर वेमज उपादेय छ, अथवा हस्तिनो अर्थ वादळ पण थाय छे, जेमनी वाणी समोघ वाणी छे, अने ऐरावत हाथीनी पेठे उच्च कोटिनी छ, अथवा जेम नारंगी हाथमां सुंदर लागे छे तेम प्रभु पण भूतल पर नारगीनी जेम भव्य प्राणीमोना खच्छ हृदयने सुंदर लागे छे, मृगादिक जनावरोमां सिंह बलिष्ठ होय छे, तेम मरतक्षेत्रनी अपेक्षाए मानव सृष्टिमा श्रीवीरप्रभु कर्मरूप मृगोने जीतवा सारु सिंह समान आत्मवलमा वलवान् छे, अनेक प्रकारनी औषधि-युक्त होवाने लीधे गंगाजल सर्व जलमां निर्मल छे, तेमज प्रभु पण कर्म लेपथी अलिप्त होवाने लीधे अत्यन्त विशुद्ध छे, पक्षिओने विष गरुड [ वेणुदेव] प्रधान छे, तेवीज रीते निर्वाण (सिद्ध) क्षेत्र के ज्या कर्ममळनो अत्यन्त अभाव छ, तेनुं खरूप वताववामा न्च्या तेनी प्राप्तिनो उपाय बताववामा ज्ञातपुत्र महावीर प्रभु सर्वोपरि छ ॥२१॥
:: जोहेसु णाए जह वीससेणे,
, पुप्फेसु वा जह अरविंदमाहु। - खत्तीणसेठे जह दंतवक्के, . .
. इसीण सेढे तह वद्रमाणे ॥ २२ ॥ - ..
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