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वीरस्तुतिः।
"ये मोक्ष शास्त्रके उपदेशक हैं।" . "शिष्योंको सदाचारमें स्थापन करते हैं।" "शिक्षाके पूर्ण-खामी होते हैं।"
"आत्मयोग-सिद्धिका मार्ग इन्हीं से मिलता है।" श्रीमान सुधर्म-आचार्य-आचार्यके समस्त गुणों से मण्डित हैं। जम्वू अन्तेवासी का सुधर्माचार्य से प्रश्न । ___अगाध गुणसमुद्ररूप सुधर्माचार्यसे जिज्ञासु शिष्य जम्वूने अंतिमतीर्थकर भगवान् ज्ञातृपुत्र-महावीरखामीके गुणोंका परिचय प्राप्त करनेके लिए यह पूछा कि वे प्रभु कैसे थे। धर्म-वर-चक्रसे संसारमें रुलानेवाले कर्मोका अन्त उन्होंने किस प्रकार किया। जिसमार्गका अनुसरण उन्होंने किया था यदि हम भी उसी मार्गका आश्रय लें तो हमारा प्रभुके साथ कैसे साम्य हो सकता है ? नरकके दु.खोंको सुनकर जिनका मन अत्यन्त उदास हो गया है, त्याग और वैराग्यसे जो समलंकृत होना चाहते हैं, वे श्रमणादि मुझसे पूछते हैं कि-संसारसे पार करनेवाला धर्म किसने प्रतिपादन किया है ? संसारमें विचरण करते समय वहुतसे श्रमण भी यही प्रश्न करेंगे। वे श्रमण-साधु होते हैं। परिग्रह ग्रन्थीके काटनेवाले हैं। निष्काम तप करते हैं। वे दूसरेके दुःख सुखको अपनी तरह समझनेके कारण खेदज्ञ भी होते हैं।। ब्राह्मण
इसके अतिरिक मुझसे कई ब्राह्मण भी यही पूछेगे। और वे ब्रह्मचर्य पालन करने से, सिद्ध-परमात्माका ज्ञान-मार्ग सुननेसे, परका आत्मा अपने सदृश जाननेसे, ब्रह्मके नामसे प्रसिद्ध हैं। वृद्ध पुरुषों के वताए ब्राह्मण लक्षण
जिसमें सहनशीलता, निरीहता, अहिंसकता, उदारता, सत्य, शौच, पांच अणुवत, विद्या, विनय सम्पन्नता है उस पुरुपमें ब्राह्मणका पहला लक्षण है।
जो शान्त है, इन्द्रियोंको अपने वशमें करता है, पवित्र और दृढ ब्रह्मचारी है। सब प्राणियोंके हित और कल्याणमें सदैव लगा रहता है। जो कभी भी क्रोधके आवेशमें नहीं आता। यह ब्राह्मणका दूसरा लक्षण है।