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वक्रोक्तिजीवितम् तरह प्रियतमा के रोमाञ्चिक कपोल का चुम्बन लेते हुए नायक के चुम्बन स्पर्श के कारण उल्लसित होते हुए उसके नेत्र को आनन्द निमीलित घर दिया ॥ ११३ ॥ तथाविधवाक्योपमोदाहरणं यथा
पाण्ड्योऽयमंसापितलम्बहारः
क्लुप्ताङ्गरागो हरिचन्दनेन । आभाति बालातपरक्तसानुः
सनिमरोद्गार इवाद्रिराजः ।। ११४॥ उस प्रकार की बायोपमा का उदाहरण जैसे
कन्धों पर धारण किए गये लम्बे हार बाला एवं हरिचन्दन से शरीर पर किए गए लेप वाला यह पाण्डुजनपद का राजा प्रातःकालिक धूप से लाल शिखरों वाले, एवं झरनों के प्रवाह से युक्त पर्वतराज (हिमालय ) की तरह सुशोभित हो रहा है ॥ ११४॥
इन सभी उदाहरणों का विश्लेषण करने के अनन्तर ग्रन्थकार कहता है कि___ आदिग्रहणाद् इनादिव्यतिरिक्तेनापि तथादिशब्दोत्तरेणोपमाप्रतीतिरिति ।
'आदि' शब्द का ग्रहण करने के कारण इवादि से भिन्न भी 'तथा' आदि शब्दों के द्वारा उपमा की प्रतीति होती है।
. पूर्णेन्दुकान्तिवदना नीलोत्पलविलोचना ॥ ११५॥ पूर्ण चन्द्र की कान्ति के सदृश कान्ति वाले मुख वाली एवं नील कमल के सदृश नयनों वाली ( सुन्दरी स्त्री है ) ॥ ११५ ॥ डा० डे कहते हैं कि सम्भवतः यह श्लोक समासोपमा का उदाहरण है। यान्त्या मुहुर्वलितकन्धरमाननं त
दावृत्तवृन्तशतपत्रनिभं वहन्त्या। दिग्धोऽमृतेन च विषेण च पदमलाक्ष्या
गाढं निखात इव मे हृदये कटाक्षः ।। ११६ ।। मुड़े हुए रण्ठल वाले कमल के सदृश, बार बार मुड़ी हुई गर्दन वाले उस मुख को धारण करते हुए जाती हुई, धनी बरोनियों वाली आंखों वाली उस (मायिका ) ने विष तथा अमृत से उपलिप्त कटाक्ष को मेरे हृदय में मानो सुदृढ रूप से गार दिया है ॥ ११॥