Book Title: Vakrokti Jivitam
Author(s): Radhyshyam Mishr
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 476
________________ C मात्तिक माघ प्रकरणमा प्रकारण सगबन्धाद: समग्रस्यापि प्रा लेमात्र की स्मणीयता के कारण इस प्रकार कोई लोकोहार हो, जसरी (प्रकरण की कता होती है, जिस प्रकार से कि चरमोत्कर्ष को प्राप्त रस के ओतप्रोत बड़ा प्रकरण सम्पर्ण, प्रबन्ध के प्राण रूप में प्रतीत होने लगता है ॥ ३-४ ॥ I PES ARE is PE IT TET तथा उत्पाद्यलकलालयादल्याने भवतिम साताणतेना प्रकारेण कृत्रिमसंविधानककामतीरकालौकिकी वक्रभावमङ्गी मानवते, सहृदयानावर्जयतीति याक्तताका कथावैचित्र्यवमतिमा तान्यस्य...... वैचित्र्यभावमार्गे, किरिशिष्टे इतिवृत्तायुक्तेऽपि इतिहास परिग्रहेऽपि । तथेति, यथाप्रयोगमपेक्षत इत्याह यथा प्रबन्धस्य सकलस्यापि जीवतं महाकभितम कामधिरूढरसनिर्भरमा प्रथमधाराध्यासित भृङ्गारादिपरिपणमे phi FPO TFFIF IFE FIER ) . ! FIR TERE नि उस प्रकार उत्पाद्य लेश मात्र के, लावण्य से दूसरी वक्रता होती है-उस प्रकार कृत्रिम कथा की रमणीयता कारण लोकोत्तर वक्रता की शोभा उत्पन्न हो जाती है अर्थात् सहृदयों का आकृष्ट करती हैं। कही कथा की विचित्रता के मार्ग में-काव्य की विचित्रता मार्ग मा समागम इतिवृत्त में प्रयुक्त भी (मार्ग में अर्थात इतिहास से ग्रहण किए गये ( मांग ) में भी ( कारिका में प्रयुक्त तथा मशिदा) यया के प्रयोग की अपेक्षा रखता है अतः कहते हैं-- जिससे सम्पूर्ण प्रबन्ध का भी (वह) प्रकरण प्राण रूप प्रतीत होता है, जिस प्रकार से सम्पूर्ण काव्यादि का भी अकरण प्राणं सर्देश हो जाता है । किस स्वरूपी वलिकरण काष्ठ पर पह, हुए रस से प्रतिप्रोत( प्रकरण) गिअर्थात्मक पहली पंक्ति में आसन ग्रहण करने वाले श्रृङ्गार आदि (सा) से परिपूर्ण प्रकरण प्राणभूत प्रतीत होने लगता है | EFFEREST PRETS ___ प्रकरणवक्रता के इस प्रकार के उदाहरण में कुन्तक अभिज्ञान शाकु FELSSIST ISSUES की प्रस्तावना तथा राजा के मस्तिष्क । TROTATARTEmiraimarai ग' व्याख्या कर इस प्रसङ्गम कुन्त जिन श्लोकों को उद्धृत किया है व इस प्रकार है- " FPS IN TE TEE BF FRT FRIETIES) FO PT विचिन्तयन्ती समागमातमा EYE Si ( की , bzF HIT तपोनिति मिन मामस्थितम् ED की शा fo F THIरिष्यति मां न सोष्टिोऽपि स्वनः | om a p का प्रमत्तः प्रथमं वाHिHE RF THE

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