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चतुर्थोग्मेषः
कुरुते कविः काव्ये नाटके सर्गबन्धादौ कामपि वक्रतां कुरुते विदधाति कविरित्यद्भुतप्रतिभाप्रसारप्रकाशः । केन संविधानाङ्कनाम्नापि । प्रधानप्रबन्धप्राणगतप्रायं यत्संविधानं कथायोजनं तदङ्कश्चिह्नमुपलक्षणं यस्य तत्तथोक्तं तच्च तन्नाम | 'अपि' - शब्दो विस्मयमुद्योतयति ।
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वस्तुओं में वैदग्ध्य रहने दीजिए अर्थात् प्रतिपादित किए जाने वाले प्रकरणों में प्रतिपाद्य वस्तु में वैदग्ध अर्थात् सौन्दर्य तो दूर ही रहे । काव्य में कवि किसी वक्रता को उत्पन्न करता है - काव्य अर्थात् नाटक एवं महाकाव्य आदि में कवि अर्थात् अद्भुत प्रतिभा के विकास के प्रकाश वाला ( ही ) कवि किसी वक्रता को करता है अर्थात् उपनिबद्ध कर देता है । किससे संविधान के चिह्न वाले नाम से भी। प्रधान प्रबन्ध का प्राण रूप जो संविधान अर्थात् कथा की योजना उसका अङ्क चिह्न है उपलक्षण जिसका उसे हम कहेंगे संविधानाङ्क नाम ( उसके द्वारा भी ) 'अपि' शब्द विस्मय का बोध कराता है ।
यथा - अभिज्ञानशाकुन्तल - मुद्राराक्षस - प्रनिमानिरुद्ध- मायापुष्पककृत्यारावण च्छलितराम - पुष्पदूषितकादीनि । न पुनर्हयग्रीववधशिशुपालवध - पाण्डवाभ्युदय रामानन्द - रामचरितप्रायाणि ।
जैसे - अभिज्ञानशाकुन्तल, मुद्राराक्षस, प्रतिमानिरुद्ध, मायापुष्पक, कृत्यारावण, छलितराम तथा पुष्पदूषितक आदि । न कि हयग्रीववध, शिशुपालवध, पाण्डवाभ्युदय, रामानन्द तथा रामचरित आदि )
प्रबन्धवक्रतायाः प्रकारान्तरमप्याह
प्रबन्ध वक्रता के अन्य ( छठवें ) भेद को भी बताते हैंअप्येककक्ष्या बद्धाः काव्यबन्धाः कवीश्वरैः । पुष्णन्त्यनर्घा मन्योऽन्यवैलक्षण्येन वक्रताम् ॥ २५ ॥
श्रेष्ठ कवियों द्वारा एक ही कक्षा से उपनिबद्ध किए गये काव्यबन्ध परस्पर एक दूसरे से असमान ( विलक्षण होने के कारण अमूल्य वक्रता को पुष्ट करते हैं ।। २५ ।।
पुष्णन्ति उल्लासयन्ति अनर्घामपरिच्छेद्याम् अन्योऽन्यवैलक्षण्येन परस्पवैसादृश्येन वक्रतांम् वक्रभावम् । के ते काव्यबन्धाः रूपकपुरःसराः किविशिष्टाः - अध्येककच्या बद्धाः एकेनापीतिवृत्तेन योजिताः । कैः कवाश्वरैः । एकत्र विस्तीर्ण वस्तु सपद्भिः अन्यत्र सङ्क्षिप्तं वा विस्तारयद्भिः ...... विचित्र वाच्यवाचकालङ्करणसङ्कलनया नवतां नयद्भिरित्यर्थः ।