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वक्रोक्तिजीवितम् किया है वही ( मेघदूत नामक ) प्रबन्ध के मेघदूतत्व में वस्तुतः प्राणभूत हो गया है अतः अत्यधिक सहृदयों के हृदयों को आनन्दित करने वाला है ( अतः अर्थ उसी प्रकार का होना चाहिए जो सहृदयों को आह्लादित करने वाले अपने स्वभाव से ही सुन्दर हो) न कि फिर इस प्रकार काजैसे ( राजशेखर विरचित बालरामायण के इस ६।३४ पद्य में हैं )
सद्यः पुरीपरिसरेऽपि शिरीषमृद्वी सीता जवात्रिचतुराणि पदानि गत्वा । गन्तव्यमद्य कियदित्यसकृद् वाणा
रामाश्रणः कृतवती प्रथमावतारम् ।। ६३ ॥ जहाँ कवि सीता के राम के साथ वन के लिए प्रस्थान करने पर उनकी सुकुमारता वर्णन करते हुए कहता है कि-) शिरीष ( पुष्प ) के सदृश कोमल सीता ने ( अयोध्या ) नगरी के समीप में ही तत्काल वेग से तीन-चार पग चलकर (श्रान्त हो गई ) 'आज ( अभी) कितनी दूर जाना है। ऐसा बारबार कहती हुई रामचन्द्र के आंसुओं को पहली बार अवतरित किया ( अर्थात उनके बार-बार पूछने पर कि अब कितना दूर जाना है, रामचन्द्र जी की आँखों में आंसू आ गए) ॥ ३३ ॥
. अत्रासत्प्रतिक्षणं कियदद्य गन्तव्यमित्यभिधानलक्षणः परिस्पन्दो न स्वभावमहत्तामुन्मीलयति, न च रसपरिपोषाङ्गतां प्रतिपद्यते । यस्मात्सीतायाः सहजेन केनाप्यौचित्येन गन्तुमध्यवसितायाः सौकुमार्यादेवंविधं वस्तु हृदये परिस्फुरदपि वचनमारोहतीति सहृदयः संभावयितुं न पार्यते । न च प्रतिक्षणमभिधीयमानमपि राषवाश्र. प्रथमावतारस्य सम्यक् सङ्गतिं भजते, सकृदाकर्णनादेव तस्यापपत्तेः । एतच्चात्यन्तरमणीयमपि मनाङमात्रचलितावधानत्वेन कवेः कदर्थितम् । तस्माद् 'अवशम्' इत्यत्र पाठः कर्तव्यः । तदेवंविधं विशिष्टमेव शब्दार्थयोर्लक्षणमुपादेयम् । तेन नेयार्यापार्थादयो दूरोत्सारितत्वा. त्पृथक् न वक्तव्याः।
यहाँ ( इस श्लोक में ) असकृत् अर्थात् क्षण-क्षण पर, आज कितनी दूर जाना है इस प्रकार का कथनरूप व्यापार न तो (सीता के ) स्वभाव की महत्ता को ऊन्मीलित करता है और न (प्रकृत करुण) रस के परिपोषण का ही अङ्ग बनता है। क्योंकि किसी सहज औचित्य के कारण ( अपने पति रामचन्द्र के साथ ) जाने के लिए उद्यत हुई सीता के हृदय में सौकुमार्य के