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द्वितीयोन्मेषः नसारेण चेतनचमत्कारकारितया कवेरभिप्रेतम् । तस्मात् कामपि वक्रतामावहति । ___ तथा हरिणियों ने मुझे भली-भाँति बताया था। कैसे मुझे (बताया था) तुम्हारे गमन (मार्ग) को न जानने वाले ( मुझे ) अर्थात् लताओं द्वारा दिखाए गए रास्ते को न समझने वाले मुझे ( रास्ता बताया था)। इसीलिए उन्होंने भली-भाँति रास्ता दिखाया था क्योंकि वे उन लता आदि की अपेक्षा कुछ अधिक समझदार थीं। वे ( हरिणियाँ ) कैसी थीं-( तुम्हारे अपहरण रूप) उस प्रकार के दुःख के देखने से पीड़ित होने के कारण तृण भक्षण का परित्वाग. कर चुकी थीं। क्या करती हुई ?--उसी दिशा की ओर अपनी आँखें घुमाए हुए ( जिधर तुम गई थी)। कैसी आँखेंजिनकी पलकों की कतारें ऊपर की ओर उठी हुई थीं। तो इस प्रकार उस प्रकार की अवस्या से युक्त होने के कारण आकाश-पक्ष से दक्षिण दिशा की
ओर ( तुम ) ले जाई गई ऐसा ( अपनी आँखों के ) इशारे से सूचित करती हुई ( मृगियों ने तुम्हारा जाने का रास्ता बताया )।
यहाँ पर (लता के स्थान पर ) वृक्ष आदि ( तया मृगियों के स्थान पर ) मृग आदि दूसरे लिङ्गों के विद्यमान होने पर वर्ण्यमान वस्तु के औचित्य के अनुरूप सहृदयों का अह्लादजनक होने से स्त्रीलिङ्ग ( लता एवं हरिणियाँ ) ही अभिष्ट था । उसी के कारण ( यह वर्णन ) किसी अपूर्व वक्रता को धारण करता है। ___ एवं प्रातिपदिकलक्षणस्य सुबन्तसं भविनः पदपूर्विस्य यथासंभवं वक्रमावं विचार्येदानोमुभयोरपि सुपिङन्तयोर्धातुस्वरूपः पूर्वभागो यः संभवति यस्य वक्रतां विचारयति । तस्य च क्रियावैचित्र्यनिबन्धनमेव वक्रत्वं विद्यते। तस्मात् क्रियावैचित्र्यस्यैव कोदृशाः कियन्तश्च प्रकाराः संभवन्तीति तत्स्वरूपनिरूपणार्थमाह - ___ इस प्रकार सुवन्त से सम्भव होने वाले प्रातिपदिक रूप, पदपूर्ति की वक्रता का यथासम्भव विवेचन प्रस्तुत कर अब सुबन्त तथा तिङन्त दोनों का ही धातु रूप जो पूर्वभाग सम्भव होता है उसकी वक्रता का विवेचन करते हैं। उसकी वक्रता का कारण किया की विचित्रता ही होता है । इस लिये क्रिया की विचित्रता के ही किस प्रकार के और कितने भेद सम्भव हो सकते हैं उनको स्वरूप बताने के लिए ( ग्रन्थकार ) कहता है कि
कतरत्यन्तरगत्वं कन्तरविचित्रता । सविशेषणवैचित्र्यमुपचारमनोज्ञता ॥२४॥