Book Title: Vakrokti Jivitam
Author(s): Radhyshyam Mishr
Publisher: Chaukhamba Vidyabhavan

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Page 464
________________ इस प्रकार सुन्दरतम समानता क तिपादन त्यदपाय - वस्तर SHISHEPHATE या करने के लिए मैं कुछ निश्चय नहीं कर पा रहा है। कुन्तक के अनुसार यह समुन्देह अलङ्कार केवल एक ही प्रकार का होता है जो कि उत्प्रेक्षा पर आधारित रहता है। ससन्हस्मक निधनलस्त्वमुत्प्रेक्षा. मूलहलाद Eि OF ARE AANE FREET TIME Tipost fPTE # इसके बाद कुन्तक माह मुक्तिक्लङ्कार का विवेचना प्रस्तुताकाले हैं। किन THE BE ERNE IFE FEER Eri ERY PEON TEETHERS IPgh अन्यदपायत, रूपवनायस्य वस्तन HERE to TEYE क्रूिमापनको मस्यामसावपतिमेता ARRH - जिसमें वर्णनीय पदार्थ को ( कोई नवीन दूसरी स्वरूप प्रदान करने के लिये ( उसके वास्तविक ) स्वरूप का अपलाप किया जाता है उसे (प्राथार ने) अपहुति अलङ्कार स्वीकार किया हकप TARE FES एवं स्वरूपसन्देहसुन्दा ससन्दहमभिधायु स्वरूपापह्नतिरमणीयामपनुतिमभिधत्ते-अन्यदित्यादि । पूर्ववदुरप्रेक्षामूलत्वमेवे जीवितमस्याः । सम्भावनानुमानात सादृश्याच वर्णनीयस्य वस्तुनः प्रस्तुतस्यार्थस्य अन्यत्किमप्यपूर्व रूपमर्पयितुं रूपान्तरं विधातुं स्वरूपापहषः स्वभावीपलाप सम्भवति यस्याम असौं तथाविधभणितिरवापहति# प्रातदिनी (13) THE PEYE kि PPF} * *ति 1 इस प्रकार स्वरूपविष्यक मोह के कारण रमणीय समन्देह, अलङ्कार का प्रतिपादन का (मका अलरूप के अपलाप के कारण रमणीय अपल ति अलङ्कार का निरूपण करता है हालत्यदित्यादि कारिका के द्वारा पहले, (सन्हासागर) की तरह ही उत्प्रेक्षा का मूल में होना ही इम, अलङ्कार.) का सभाहला अनुमान के कारण तथा सादृश्य के कारण वर्णनीय वस्तु अर्शकामातुन पदार्थ के इसके किसी अपर्व रूम को प्रदान करने के लिए अर्थात दूसरे स्वरूप का निरूपण करने के लिए उसके वास्तुविक स्वरूप का अपल अर्थात स्वभाव का अपलाप जिसमें साम्भव होता है वह उस प्रकार की उक्ति ही सहृदयों द्वारा अपहुति ( अलङ्कार ) स्वीकार की गई है. अर्थात् "२R THomfreez EE रिका __ कुन्तकारले अापति अलार के गीत बाहरण प्रस्तुत किए हैं जिनमें से पहला उदाहरण पाण्डुलिपिक कोणाही पका-जा का शेष दो इस प्रकार maise Fire ET FREVIES

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