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i-5 एवं सकलसाहित्यसर्वस्वकल्पवाक्यवक्रताप्रकाशनानन्तरमवसरप्रति प्रकरणावक्रतामवतास्यति- Fparis --- यत्रा नियन्त्रणोत्साहपरिस्पन्दोपशोमिनी | SATY
व्यावृत्तिर्व्यवहां स्वाशयोल्लेखशालिनी ॥ १॥ अव्यामूलादनाशंक्यसमुत्थाने मनोरथें ।' काप्युन्मीलात नि:सीमा सा प्रबन्धशिवक्रती ॥ २ ॥ इस प्रकार समय साहित्य की प्राणभूत वाक्यवऋता' के विवेचन के अनन्तर ( ग्रन्थकार ) अक्सरप्राप्त 'प्रकर्णवक्रता' को प्रस्तुत करता है है जहाँ पर जड़ से लेकर ही असम्भावित, अंकुरणवाले कवि मनोरथ के प्रस्तुत किए जाने पर एक अनिर्वचनीय और असीम तथा निर्बाध उत्साह के स्फुरण के कारण सुशोभित, होने वाली और अपने आशय की उदावना के कारण मनोहर लगने वाले व्यवहार करने वालों की प्रवृत्ति दृष्टिगत होती है उसे प्रकरणवक्ता कहते हैं ___ वक्रता वक्रभावो भवतीति सम्बन्धः । कीदृशी-नि:सोमा निरवधिः यत्र यस्यां व्यवहत णां तद्व्यापारपरिग्रहव्यप्राणां व्यावृतिः प्रवृत्तिः काप्यलौकिकी उन्मीलति उद्भिद्यते । किविशिष्टा नियन्त्रणोत्साहपरिस्पन्दोपशोभिनी निरर्गलव्यवसायस्फुरितस्फारविच्छत्तिः । अतएव स्वाशयोल्लेखशालिनी निरुपमनिजहृदयोल्लासितालकृतिः । कस्मिन् सति-अव्यामूलादनाशंक्यसमुत्थाने मनोरथे। कन्दात्प्रभृत्य सम्भाव्यसमुद्भेदे समी. हिते । तदयंमत्राथ. REETTE
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-निःसीम अथात जिसकी
कोई अवधि नहीं होती। जहाँ अर्थात् जिस ( वक्रता ) में व्यावहारिकों अर्थात् उस
तो') के व्यापार के साधन में व्यग्र ( कवियों की व्यावृत्ति अदि अवृत्ति, कोई लोकोत्तर उम्मीलित 'अपति प्रस्फुटित होती है। कैसी (प्रवृत्ति ) निधि उत्साह के परिस्फुरण से सुशोभित होने वाली अर्थात स्वच्छन्द (कवि) व्यापार के स्फुरण के कारण प्रत्यधिक सौन्दर्य वाली ( प्रवृत्ति स्फुटित होती है। इसीलिए (वह ) अपने आशय की उदभावना के कारण मनोहर लगने वालों बाद