________________
३४५
तृतीयोन्मेषः
असारं संसारम् ॥ ७३॥ इत्यादि । अत्र 'विधातुं व्यवसितः' कर्ता संसारादीनामसारत्वप्रभृ. तीन धर्मानुद्योतयन् दीपकालङ्कारतामाप्तवान् ।
(दीपक अलंकार ) केवल तथा पंक्तिसंस्थ ( भेद से ) दो प्रकार का दिखाई पड़ता है । ( उनमें जहाँ बहुत से पदार्थों का ) एक प्रकाशक होता है (वह केवल दीपक तथा जहाँ ) बहुतों के बहुत से (प्रकाशक ) हैं ( वह पंक्तिसंस्थ दीपक होता है ) ॥१७॥
इसी कारिका की व्याख्या करते हैं-इसी ( दीपकालंकार ) के भेदों का निरूपण करते हैं-दो प्रकार का दिखाई पड़ता है अर्थात् (यह दीपक अलंकार) लक्ष्य ( काव्यादि ) में दो तरह का दिखाई पड़ता है। कैसे-केवल अर्थात् असहाय ( रूप में ) अथवा पंक्तिसंस्थ अर्थात् पंक्ति में व्यवस्थित अर्थात् अन्य सहायक द्वारा विरचित उसकी समान स्थिति में विद्यमान । कैसे-एक अर्थात्. बहुत से पदार्थों का अकेला प्रकाशक केवल दीपक कहा जाता है । जैसे
(उदाहरण संख्या १।२१ पर पूर्वोदाहृत) असारं संसारम् । इत्यादि श्लोक ।
यहाँ 'विधातुं व्यवसितः' कर्ता संसार आदि के निःसारता आदि धर्मों को प्रकाशित करता हुआ दीपक अलङ्कार वन गया है।
पतिसंस्थम्-भूयांसि बहूनि वस्तूनि दीपकानि भूयसां प्रभूतानां वर्णनीयानां सन्ति वा कचिद् भवन्ति वा कस्मिश्चिद्विषये । यथा
कइकेसरी वअणाणं मोत्तिअरअणाणं आइवेअटिओ। ठाणाठाणं जाणइ कुसुमाणं अ जीणमालारो ।। ७४॥ ( कविकेसरी वचनानां मोक्तिकरत्नानामादिवैकटिकः ।। स्थानास्थानं जानाति कुसुमानान्च जीर्णमालाकारः ॥) चन्दमऊएहिणिसा णलिनी कमलेहि कुसुमगुच्छेहि लआ । हंसेहि सारअसोहा कव्वकहा सज्जनेहि करइ गरुई ।। ७५ ॥ (चन्द्रमयूखैनिशा नलिनी कमलैः कुसुमगुच्छलता। हंसैश्शरदशोभा काव्यकथा सज्जनैः क्रियते गुर्वी ॥)
पङ्क्तिसंस्थ-(दीपक वहाँ होता है जहाँ ) कहीं किसी विषय में ( अथवा स्थल पर बहुत से अर्थात् अनेकों वर्णनीय पदार्थों की बहुत-सी अर्थात् अनेकों वस्तुएं प्रकाशक होती हैं । जैसे---
श्रेष्ठ कवि (कवि केसरी ) उक्तियों के, प्राचीन जोहरी मौक्तिकरत्नों के तथा पुराना माली फूलों के औचित्य तथा अनौचित्य को जानता है ॥ ७४ ॥