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द्वितीयोन्मेषः
२५५ जहाँ पर औचित्य का अत्यन्त अन्तरङ्ग होने के कारण समय रमणीयता को प्राप्त कर लेता है ( वैसी) यह 'कालवैचित्र्य वक्रता' होती है ॥ २६ ।।
एषा प्रकान्तस्वरूपा भवत्यस्ति कालवैचिज्यवक्रता। कालो वैयाकरणादिप्रसिद्धो वर्तमानादिर्लट्प्रभृतिप्रत्ययवाच्यो यः पदार्थानामुदयतिरोधानविधायी तस्य वैचित्र्यं विचित्रभावस्तथाविधत्वेनोपनिबन्धस्तेन वक्रता वक्रत्वविच्छित्तिः। कोदशी-यत्र यस्यां समयः कालाख्यो रमणीयतां याति रामणीयकं गच्छति । केन हेतुनाप्रौचित्यान्तरतम्येन । प्रस्तुतत्वात्प्रस्तावाधिकृतस्य वस्तुनो यदौचित्यमुचितभावस्तस्यान्तरतम्येनान्तरङ्गत्वेन । तदतिशयोत्पादकत्वेनेत्यर्थः।
पथा
___ यह जिसका स्वरूप ( अभी) बताया जा रहा है, यह कालवैचित्र्य वक्रता होती है। काल का अर्थ है व्याकरणशास्त्र के ज्ञाताओं में प्रसिद्ध लट् आदि प्रत्ययों के द्वारा कहे जाने वाले पदार्थों के उदित होने एवं तिरोहित होने की व्यवस्था करने वाला वर्तमानादि काल उसका वैचित्र्य अर्थात् विचित्रता, उस ढंग से उसका वर्णन उसके कारण जो वक्रता अर्थात् बाँकपन की सुन्दरता होता है ( उसे कालवैचिव्य वक्रता कहते हैं )। कैसी है ( वह कालवक्रता) जहाँ अर्थात् जिस ( वक्रता ) में कहा जाने वाला समय रमणीयता को प्राप्त होता है अर्थात् मनोहर हो जाता है। किस कारण से ( मनोहर हो जाता है) औचित्य का अन्तरतम होने से । प्रसंगप्राप्त होने के कारण प्रकरण की. अधिकारिक वस्तु का जो औचित्र्य अर्थात् उपयुक्तता है उसके आन्तरतम्य के द्वारा अर्थात् उसका अत्यन्त ही अन्तरंग होने के कारण अर्थात् उस वस्तु में उत्कर्ष लाने के कारण ( रमणीय हो जाता है ) । जैसे
समविसमणिव्विसेसा समतदो मंदमंदसंचारा। प्रइरो होहिति पहा मणोरहाणं पि दुल्लंघा ॥६५॥ ( समविषमनिविशेषाः समन्ततो मन्दमन्दसञ्चाराः ।
अचिराद्भविष्यन्ति पन्थानो मनोरथानामपि दुर्लध्या॥) चारों ओर से बराबरी एवं ऊँचे नीचे की विशेषताओं से.हीन, धीरे-धीरे (बचा बचाकर ) चलने लायक, ये रास्ते शीघ्र ही अभिलाषाओं के लिए भी दुर्गम हो जायगे ॥ ९५ ।