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प्रथमोन्मेषः
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( तथा दूसरे उदाहरण में प्रयुक्त ) 'हस्तापचेयम्' ( अर्थात् हाथ के द्वारा एकत्रित करने योग्य ) इस पद से मूर्त पुष्प आदि वस्तुओं में प्राप्त होने वाले संहतत्व अर्थात् एकत्रित करने की योग्यतारूप) सामान्य के बलपर उपचार से मूर्त भी यश का हाथ से एकत्रित करने का अभिधान, वक्रता ( अर्थात् उपचारवैचित्र्य ) को धारण करता है।
द्रवरूपस्य वस्तुनो वाचकशब्दस्तरङ्गितत्वादिधर्मनिबन्धनः किमपि सादृश्यमात्रमवलम्ब्य संहतस्यापि वाचकत्वेन प्रयुज्यमानः कविप्रवाहे प्रसिद्धः । यथा
श्वासोत्कम्पतरङ्गिणि स्तनतटे इति ॥ ४६॥ तरङ्गित्व आदि धर्म का प्रतिपादन करने के कारण द्रव्य रूप वस्तु का वाचक शब्द किसी सादृश्यमात्र का आश्रय ग्रहण कर ठोस ( मूर्त वस्तु ) के भी वाचक शब्द के रूप में प्रयोग किया जाता हुआ कवि समुदाय में प्रसिद्ध है ( अर्थात् कविजन प्रायः किसी सादृश्यमात्र को लेकर तरल पदार्थ के वाचक शब्द का ठोस मूर्त पदार्थ के वाचक शब्द के रूप में प्रयोग करते हैं ) । जैसे___ 'श्वास से उत्पन्न कम्पन के द्वारा तरङ्गित होते हुए स्तनप्रदेश । पर' ॥ ४६ ॥
( यहाँ पर कवि ने स्तनप्रदेश को श्वासजन्य कम्प के द्वारा तरङ्गित बताया है । वस्तुतः तरङ्गित होना द्रव्य पदार्थ का धर्म है जबकि स्तनप्रदेश द्रव पदार्थ न होकर ठोस मूर्त पदार्थ है । अतः केवल कम्पनमात्र साम्य के आधार पर कवि ने स्तनप्रदेश को तरङ्गित बताकर एक अपूर्व चमत्कार की सृष्टि की है जिससे काव्यमर्मज्ञों को एक अलौकिक आनन्द की अनुभूति होती है । अतः यहां पर उपचारवक्रता मानी जायगी। यह सम्पूर्ण पद्य वक्रोक्तिजीवित के प्रथम उन्मेष के १०६ उदाहरण में उद्धृत है जिसका कि एक अंशमात्र यहाँ पर गृहीत हुआ है । ) कचिदमूर्तस्यापि द्रवरूपार्थाभिधायी वाचकत्वेन प्रयुज्यते । यथा
एकां कामपि कालविप्रषममी शौर्योष्मकण्डूव्यय
व्यप्राः स्युश्विरविस्मृतामरचमूडिम्बाहवा बाहवः ॥४७॥ एतयोस्तरङ्गिणोति विपुषमिति च वक्रतामावहतः।