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प्रथमोन्मेष उभयात्मक है। उभय अर्थात् अभी-अभी कहा गया ( सुकुमार और विचित्र रूप ) मार्गद्वय है नात्मा अर्थात् स्वरूप जिसका (बह उभवात्मक हुवा) इस प्रकार का विग्रह होगा। (मध्यम मार्ग) दोनों ( सुकुमार और विचित्र ) मागों की छाया पर आश्रित होता है यह तात्पर्य हुमा । उन (तीनों मार्गों) का स्वरूप अपने-अपने लक्षण के समय बताया जायगा।
अत्र च बहुविधा विप्रतिपत्तयः .संभवन्ति । यस्माचिरन्तनैविदर्भादिदेशविशेषसमाश्रयणेन वैदर्भीप्रभृतयो रीतयस्तिनः समाम्नाताः । तासां चोत्तमाधममध्यमत्ववैचित्र्येण त्रैविष्यम् । अन्यैश्च वैदर्भगौडीयलक्षणं मार्गद्वितयमाख्यातम् । एतयोभयमप्ययुक्तियुक्तम् । यस्मादेशभेदनिबन्धनत्वे रीतिभेदानां देशानामानन्त्यादसंख्यत्वं प्रसन्यते । न च विशिष्टरीतियुक्तत्वेन काव्यकरणं मातुलेयभगिनीविवाहवद् देशधर्मतया व्यवस्थापयितुं शक्यम् । देशधर्मो हि वृद्धव्यवहारपरंपरामात्रशरणः शक्यानुष्ठानतां नातिवर्तते । तथाविधकाव्यकरणं पुनः शक्त्यादिकारणकलापसाकल्यमपेक्ष्यमाणं न शक्यते तथाकथंचिदनुष्ठातुम् । न च दाक्षिणात्यगीतविषयसुस्वरतादि. ध्वनिरामणीयकवत्तस्य स्वाभाविकत्वं वक्तुं पार्यते । तस्मिन् सति तथाविधकाव्यकरणं सर्वस्य स्यात् । किंच शक्ती विद्यमानायामपि व्युपत्त्यादिराहार्यकारणसम्पत्प्रतिनियतदेशविषयतया न व्यवतिष्ठते, नियमनिबन्धनाभावात् तत्रादर्शनाद् अन्यत्र च दर्शनात् । ___ इस ( मार्ग-त्रितय ) के विषय में अनेक प्रकार की विप्रतिपत्तियां सम्भव हैं । क्योंकि प्राचीन ( वामन, राजशेखर आदि ) आचार्यों ने (विदर्भ आदि देशविशेषों ( में प्राप्ति ) के आधार पर वैदर्भी आदि (वैदर्भी, गोडीया और पाञ्चाली) तीन रीतियों को स्वीकार किया है। और उन (वैदर्भी आदि तीनों रीतियों) के उत्तम, अधम और मध्यम रूप-वैचित्र्य (का प्रतिपादन करने ) के कारण ( उत्तम, अधम और मध्यम ) तीन प्रकार स्वीकार किये हैं। तथा दूसरे ( दण्डी आदि ) आचार्यों ने वैदर्भ और गौडीय रूप दो मार्गों की स्थापना किया है । ये दोनों ही (वामन, राजशेखर और दण्डी के मत) युक्तियुक्त नहीं हैं। क्योंकि रीतिभेदों का आधार (वामन, राजशेखर के अनुसार ) वेशभेद को स्वीकार कर लेने पर देशों के अनन्त होने से (रीतियां भी) असंख्य हो जायगी। और विशिष्ट रीति से युक्त रूप में काव्य-रचना की स्थापना मामा की लड़की के साथ विवाह की भांति ( मातुलेयभगिनी-विवाहवत् ) देशधर्म के भाषार पर नहीं की जा सकती
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