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वक्रोक्तिजीवितम्
अत्र त्रिलिङ्गत्वे सत्यपि 'तटं शब्दस्य, सौकुमार्यात् स्त्रीलिङगमेव प्रयुक्तम् । तेन विच्छित्यन्तरेण भावो नायकव्यवहारः कश्चिदासूत्रित इत्यतीव रमणीयत्वाद्वक्रतामावहति ॥
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यहाँ पर तट शब्द के ( स्त्री, नपुंसक एवं पुंल्लिङ्ग ) तीनों ही लिङ्गों में सम्भव होने पर भी सुकुमारता के कारण स्त्रीलिङ्ग को ही प्रयुक्त किया गया है । अत: दूसरे ढङ्ग से उपस्थित होने वाला नायक का व्यवहार प्रतिपादित किया गया है । अतः यह अत्यधिक मनोहर होने के कारण वक्रता को धारण करता है ।
इदमपरमेतस्याः प्रकारान्तरं लक्षयति-
विशिष्ट योज्यते लिङ्गमन्यस्मिन् संभवत्यपि ।
यत्र विच्छित सान्या वाच्यौचित्यानुसारतः ॥ २३ ॥
अब इसके अन्य भेद का लक्षण करते हैं
जहाँ पर ( वर्ण्यमान ) पदार्थ के औचित्य के अनुरूप अन्य ( लिङ्ग ) के सम्भव होने पर भी सोन्दर्य उपस्थित करने के लिए विशेष लिङ्ग को प्रयुक्त किया जाता है वह दूसरे प्रकार को ( लिङ्गवैचित्र्वक्रता ) होती है ।। २३ ।।
सा चोक्तस्वरूपान्यापरा विद्यते । यत्र यस्यां विशिष्टं योज्यते लिङ्गत्रयाणामेकतमं किमपि कविविक्षया निबध्यते । कथम् - अन्यस्मिन् संभवत्यपि, लिङ्गान्तरे विद्यमानेऽपि । किमर्थम - विच्छित्तये शोभायै । कस्मात् कारणात् -- वाच्योचित्यानुसारतः । वाच्यस्य वर्ण्यमानस्य वस्तुनो यदौचित्य मुक्तिभावस्तस्यानुसरणमनुसारस्तस्मात् । पदार्थौचित्यमनुसृत्येत्यर्थः । यथा-
वह, जिसका स्वरूप ( २३ वीं कारिका में ) कहा गया है अन्य अर्थात् दूसरी ( लिङ्ग वैचित्र्यवक्रता ) है । जहाँ, जिस ( वक्रता ) में विशेष (लिङ्ग ) की योजना की जाती हैं अर्थात् तीनों लिङ्गों में से किसी एक लिङ्ग ( विशेष ) का प्रयोग ( कवि के अभिप्रेत कथन के कारण ) किया जाता है । कैसे ( लिङ्गविशेष का प्रयोग किया जाता है ? ) अन्य लिङ्ग के सम्भव होने पर भी अर्थात् ( जिसका प्रयोग किया गया है उससे भिन्न ) दूसरे लिङ्गों के विद्यनान रहने पर भी ( लिङ्गविशेष प्रयुक्त होता है ) । किसलिए ?. विच्छित्ति अर्थात् सौन्दर्य ( लाने ) के लिए । किस कारण से – पदार्थ के औचित्य के अनुसार । वाच्य अर्थात् वर्णद किए जाने वाले पदार्थ का ज