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प्रथमोन्मेषः झगिति अर्थात् सवप्रथम ( सुनने के बाद तुरन्त ) अर्थ-समपंच बर्थात् वस्तु का प्रतिपादन ( करने वाला)। किस प्रकार (के अर्थ का प्रतिपादन) बिना क्लेश के अभिप्राय को व्यक्त करने वाले अर्थात अनायास ही अभिप्राय को प्रकट कर देने वाले ( अर्थ का समर्पण )। किस विषय (से सम्बन्धित ) रस एवं वक्रोक्ति विषयक । रस अर्थात् शृङ्गारादि वक्रोक्ति अर्थात् समस्त अलङ्कारों में सामान्यभूत ( वाग्विच्छित्ति ) है विषय अर्थात् गोचर जिसका वह हुआ तथोक्त ( रसवक्रोक्तिविषयक अभिप्राय ) उसे ही बिना कष्ट के व्यक्त करने वाला ) वह ही 'प्रसाद' नामक (सुकुमार मार्ग का दूसरा ) गुण कहा जाता है। यहां ( इस 'प्रसाद' नामक गुण का) परम रहस्य है-पदों का (१) समास से वर्जिन होना, (२) प्रसिद्ध (ही अर्थ ) का अभिधान करना ( ३ ) ( अर्थ के साथ ) साक्षात् (अव्यवहित) सम्बन्ध होना, एवं (४) समास के विद्यमान होने पर भी ( सरलतापूर्वक अर्थ की.) प्रतीति कराने वाले समास से युक्त होना । (इस कारिका में जो) 'आकूत' शब्द ( का उपादान किया गया है वह ) तात्पर्य की विच्छित्ति ( रमणीयता के अर्थ ) में किया गया है। ( अर्थात् रमणीय तात्पर्य वाली वस्तु को अनायास व्यक्त करने वाला प्रसाद नामक गुण होता है।) उदाहरण जैसेहिमव्यपायाद्विशदाधराणामापाण्डुरीभूतमुखच्छवीनाम् ।। स्वेदोद्गमः किंपुरुषाङ्गनानां चक्रे पदं पत्रविशेषकेषु ।। २ ।।
शीत के व्यतीत हो जाने से स्वच्छ अधरों वाली एवं गौर वर्ण की मुखकान्ति से युक्त किन्नरों को सुन्दरियों के ( मस्तक पर स्थित ) पलाश के तिलकों ( पत्रविशेषकों) में पसीने के आविर्भाव ने अपना स्थान बना लिया ( अर्थात् गर्मी के कारण माथों पर पसीना आने लगा ) ॥२॥
अत्रासमस्तत्वादिसामग्री विद्यते । यदपि विविधपत्रविशेषक वैचित्र्यविहितं किमपि वदनसौन्दर्य मुक्ताकणाकारस्वेदलवोपबृंहितं तदपि सुव्यक्तमेव । यथा वा
यहाँ पर ( प्रचुर ) समास का अभाव आदि (प्रसाद गुण की) सम्पूर्ण सामग्री विद्यमान है । और जो भी विविध पत्र के विशेषकों के वैचित्र्य से उत्पन्न कोई ( अनि नीय) मुख की सुन्दरता मुक्ताकणों के आकार वाले स्वेदकणों से परिवरित की गई है, ( अर्थात् जिसमें तात्पर्य (बभिप्राव) की विच्छित्ति है ) वह भी सुस्पष्ट ही है। (अतः यहाँ प्रसाद तुम स्वीकार किया गया है ) । अथवा जैसे ( दूसरा उदाहरण)