________________
८६
प्रथमोन्मेषः वक्रभावः प्रकरणे प्रबन्धे वास्ति यादृशः । उच्यते सहजाहार्यसौकुमार्यमनोहरः ॥ २१ ॥ प्रबन्ध अथवा प्रकरण में, स्वाभाविक ( सहज ) तथा व्युत्पत्ति के द्वारा उत्पन्न की गयी ( आहार्य ) सुकुमारता से चित्ताकर्षक जिस प्रकार की वक्रता ( विद्यमान रहती ) है, ( उसे अब ) कहा जाता है ।। २१ ।।
वक्रभावो विन्यासवैचित्र्यं प्रबन्धैकदेशभूते प्रकरण यादृशोऽस्ति याहग विद्यते प्रबन्धे वा नाटकादी सोऽत्युच्यते कथ्यते । कीदृशःसहजाहार्यसौकुमायमनोहरः सहजं स्वाभाविकमाहार्य व्युत्पत्त्युपार्जितं यत्सौकुमाय रामणीयकं तेन मनोहरो हृदयहारी यः स तथोक्तः । ___वक्रभाव अर्थात् विन्यास की विचित्रता, प्रबन्ध के एकदेशभूत प्रकरण में जिस प्रकार की है अथवा प्रबन्ध अर्थात नाटक आदि में जिस ढङ्ग की ( विचित्रता ) है उसे कहते हैं। कैसा है (वह वक्रभाव) सहज तथा आहार्य सौकुमार्य से मनोहर । सहज अर्थात् स्वाभाविक, आहार्य अर्थात् व्युत्पत्ति द्वारा उत्पन्न किया गया, जो सौकुमार्य अर्थात् रमणीयता उससे मनोहर हृदय को आकर्षित करने वाला है जो वह हुआ तथोक्त ( अर्थात् सहज एवं माहार्य सौकुमार्य से मनोहर )।
तत्र प्रकरणे पक्रभावो यथा-रामायणे मारीचमायामयमाणिक्यमृगानुसारिणो रामस्य करुणाक्रन्दकर्णनकान्तरान्तःकरणया जनकराजपुच्या तत्प्राणपरित्राणाय स्वजीवितपरिरक्षानिरपेक्षया लक्ष्मणो निर्भय प्रेषितः। ___उन प्रकरण में वक्रता (का उदाहरण देते हैं) जैसे-वाल्मीकि रामायण में मारीच रूप मायानिर्मित माणिक्य ( सोने ) के मृग का पीछा करने वाले रामचन्द्र के करुण-आर्तनाद को सुनने से अधीर हो गये हृदय वाली जनकराज पुत्री सीता ने, उन (रामचन्द्र) के प्राण की रक्षा करने के लिए, अपने प्राणों की रक्षा की चिन्ता न कर, लक्ष्मण की भर्त्सना कर (लक्ष्मण को) भेजा था।
तदेतदत्यन्तमनौचित्ययुक्तम् , यस्मादनुचरसन्निधाने प्रधानस्य तथाविधव्यापारकरणमसम्भावनीयम् । तस्य च सर्वातिशयचरित. युक्तत्वेन वर्ण्यमानस्य तेन कनीयसा प्राणपरित्राणसम्भावनेत्येतदत्यन्त. मसमीचीनमिति पर्यालोच्य उदात्तराघवे कविना वैदग्ध्यवशेन मारीचमृगमारणाय प्रयातस्य परित्राणार्थ लक्ष्मणस्य सीतया कातरत्वेन रामः प्रेरितः इत्युपनिबद्धम । अत्र च तद्विदाह्रादकारित्वमेव वक्रत्वम् । यथा च