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प्रथमोन्मेषः
युक्त ( चमत्कार पूर्ण ) भङ्गिमा से कान्तिमान ( भेद विशेष ) सम्भव होते हैं ( इस क्रिया का वाक्य के साथ सम्बन्ध है )। उसी ( कवि-व्यापार की वक्रता के प्रकारों ) को दिखाते हैं
वर्णविन्यासवक्रत्वं पदपूर्वार्धवक्रता । वक्रतायाः परोऽप्यस्ति प्रकारः प्रत्ययाश्रयः ॥ १९ ॥
( कविव्यापार वक्रता के ) (१) वर्णविन्यास वक्रता ( २ ) पदपूर्वार्द्ध वक्रता तथा वक्रता का अन्य भी प्रकार ( ३ ) प्रत्ययाश्रित वक्रता है ॥१६॥
वर्णानां विन्यासो वर्णविन्यासः अक्षराणां विशिष्टन्यसनं तस्य वक्रत्वं वक्रभावः प्रसिद्धप्रस्थानव्यतिरेकिणा वैचित्र्येणोपनिबद्धः संनि. वेशविशेषविहितस्तद्विदाह्लादकारी शब्दशोभातिशयः । यथा- .. ___ वर्गों का विन्यास वर्णविन्यास होता है ( अर्थात् ) अक्षरों की विशेष ढंग से रचना (अक्षरों का विशेष क्रम से रखना ही वर्ण-विन्यास है। उसकी वक्रता अर्थात् ( लोक एवं शास्त्रादि के प्रसिद्ध ) प्रस्थान से भिन्न वैचित्र्य के द्वारा उपनिबद्ध वक्रभाव अर्थात् ( वर्णों की ) रचना विशेष के द्वारा उत्पन्न काव्यतत्त्वज्ञों का आनन्ददायक शब्द की शोभा का अतिशय ( ही वर्ण-विन्यास वक्रता ) होती है। जैसे निम्न श्लोक
प्रथममरुणच्छायस्तावत्ततः कनकप्रभस्तदनु विरहोत्ताम्यत्तन्वीकपोलतलद्युतिः । प्रसरति ततो ध्वान्तक्षोदक्षमः क्षणदामुखे
सरसबिसिनीकन्दच्छेदच्छविमंगलाञ्छनः ।। ४१ ॥ रात्रि के प्रारम्भ में पहले तो अरुण कान्ति वाला, फिर स्वर्ण ( की आभा) के सदृश आभावाला, उसके बाद ( प्रियतम के ) वियोग से व्याकुल कृशाङ्गी के गण्डस्थल ( की कांति ) के सदृश कान्ति वाला फिर तदनन्तर सरस कमलिनी के अङ्कुरों के खण्ड ( की कान्ति के सदृश कान्तिवाला (अत्यन्त धवल होकर) अन्धकार का विनाश करने में समर्थ चन्द्रमा उदित हो रहा है ।। ४१ ।।
अत्र वर्णविन्यासवक्रतामात्रविहितः शब्दशोभातिशयः सुतरां समुन्मीलितः । एतदेव वर्णविन्यासवक्रत्वं चिरन्तनेष्वनुप्रास इति प्रसिद्धम् । अत्र च प्रभेदस्वरूपनिरूपणं लक्षणावसरे करिष्यते (२।१)।