Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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सप्तमोऽध्यायः
* हिंसा के प्रकारों का कोष्ठक *
हिंसा
स्थावर (सूक्ष्म)
अस (स्थल)
संकल्प जन्य
प्रारम्भ जन्य
निरपराध
सापराध
निष्कारण
सकारण महाव्रतों की अपेक्षा अणुव्रतों में अहिंसा का एकदेश-प्रांशिक पालन होता है ।
इस व्रत के पालन से हिंसा सम्बन्धी क्रूर परिणामों के पाप से जीव बच जाता है। अनुपम जीवदया का विशेष पालन होता है।
(२) स्थूलमृषावाद विरमण- यह दूसरा व्रत है। कन्या-अलीक, गो-अलीक, भूमिअलीक, न्यास-अपहार और कूटसाक्षी, इन पाँच प्रकार के असत्य का त्याग है। इनका वर्णन क्रमशः नीचे प्रमाणे है
(१) कन्या-अलीक - सगपणादिक प्रसंगे कन्या सम्बन्धी अलीक यानी प्रसत्य-झूठ बोलना। जैसे-कन्या रूपाली नहीं होते हुए भी उसे रूपाली बताना। यहाँ पर कन्या तो उपलक्षण मात्र है । इसीलिए इसमें द्विपदप्राणी अर्थात् दो पाँव वाले प्राणी सम्बन्धी सर्व प्रकार के असत्य का कन्याअलीक में समावेश होता है। दास-दासी आदि सम्बन्धी असत्य का भी कन्या-अलीक में समावेश हो जाता है।
गो-अलीक-यानी गौ सम्बन्धी असत्य बोलना। गाय के अंग में अमुक प्रकार का रोग होते हुए भी उसको रोग रहित कहकर के अन्य को ठगने का प्रयत्न करना इत्यादि ।
, यहाँ गौ-गाय के उपलक्षण से चतुष्पद यानी चार पाँव वाले गाय, भैंस, इत्यादि समस्त पशुओं के सम्बन्ध में असत्य का गो-अलीक में समावेश होता है।
(३) भूमि अलीक-भूमि-जमीन सम्बन्धी असत्य बोलना। भूमि फलद्रूप नहीं होने पर भी उसे फलद्रूप कहकर के अन्य दूसरे को ठगने का प्रयत्न करना इत्यादि । यहाँ पर भूमि के उपलक्षण से सर्व प्रकार के सम्पत्ति सम्बन्धी असत्य का भूमि-अलीक में समावेश होता है।