Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tika Tatha Hindi Vivechanamrut Part 07 08
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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सप्तमोऽध्यायः
७/२८ ]
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(४) असमीक्ष्याधिकरण (संयुक्ताधिकरण ) - प्रसमीक्ष्य यानी विचारे बिना । अधिकरण यानी पाप का साधन । मुझे जरूरत है कि नहीं ? इत्यादि विचार किये बिना अपने को जरूरत नहीं होने पर भी शस्त्र इत्यादि अधिकरण (पाप के साधन ) तैयार रखना । कोई मांगने के लिए आ जाय तब देना पड़े; इससे निरर्थक पाप बंधाता है ।) यह 'प्रसमीक्ष्याधिकरण' है ।
(५) उपभोगाधिकत्व - उपभोग से अधिक चीज वस्तु रखनी । अर्थात् — स्वयं को जरूरत हो उससे अधिक चीज वस्तु अपने पास रखनी । जैसे- नदी, तालाब, बावड़ी इत्यादि स्थल में स्नान करने के लिए जब जाय तब साबुन इत्यादि चीज वस्तु अपने को जरूरियात पूर्ति ही ले जाने की होती है । अन्यथा अधिक देख करके ऐसे मसखरी करने वाले को अथवा अन्यदूसरे स्वार्थी आदि अपने को जरूरत नहीं होते हुए भी उस वस्तु का उपयोग करे । इससे निरर्थक पाप का बन्ध होता है ।
यहाँ पर कन्दर्प इत्यादि सहसा अथवा अनाभोग आदि से हो जाये तो अतिचार रूप है । परन्तु जो इरादा पूर्वक करते हों तो व्रतभंग होता है । प्रथम के तीन प्रतिचार प्रमादाचरण रूप अनर्थदण्ड के हैं। चौथा और पाँचवाँ प्रतिचार क्रमशः पापकर्मोपदेश तथा हिंसक साधन प्रदान रूप अनर्थदण्ड के हैं ।
उपयोग के अभाव में अथवा सहसात्कार आदि के कारण दुर्ध्यान करना यह अपध्यान रूप अनर्थदण्ड का अतिचार है ।
यह अतिचार यहाँ पर नहीं कहा है तो भी स्वयं समझ लेना चाहिए || ७-२७ ।। * नवम सामायिकव्रतस्यातिचाराः
मूलसूत्रम् -
योगदुष्प्ररिधानानावर - स्मृत्यनुपस्थानानि ॥ ७-२८ ॥
* सुबोधिका टीका *
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सूत्रे योगशब्दस्य प्रयोगः कृतः । योगशब्दः मनवचनकार्यक्रियार्थे प्रयुक्तः प्रतः तस्य त्रयो भेदाः मनवचनशरीराणि । दुष्प्रणिधानशब्दस्यार्थः दुरुपयोगः एवञ्च योगानामपेक्षया त्रयातीचाराः भवन्ति । कायदुष्प्रणिधानं वाग्दुष्प्रणिधानं-मनोदुष्प्रणिधानमनादरः । सामायिकसमये येन प्रकारेण शरीरस्य उपस्थापनं भवति तदभावः कायदुष्प्रणिधानं । एवमेव वचन - विसर्ग-भंग : वाग्दुष्प्रणिधानं । एवमेव रागादियुक्त दोषदूषितानां विचाराणां संकल्पः मनोदुष्प्रणिधानमनादरः । एवं सामायिकस्य पञ्चातिचाराः भवन्ति । त्वत्त्वैतानतिचारान् सामायिक कर्त्तव्यम् । एवमंशतोऽपि भंगं नैव भवेत् ।। ७-२८ ।।